Shopping cart

Magazines cover a wide array subjects, including but not limited to fashion, lifestyle, health, politics, business, Entertainment, sports, science,

TnewsTnews
  • Home
  • International
  • ख़ामोश ताक़त: हिंदुस्तानी प्रवासी क्यों नहीं दिखाते अपनी हैसियत का जलवा
International

ख़ामोश ताक़त: हिंदुस्तानी प्रवासी क्यों नहीं दिखाते अपनी हैसियत का जलवा

Email :
  • संख्या भारी, पर है बेचारी,
  • भारतीय हैं जरूर, पर नहीं है गुरूर

जो सिलिकॉन वैली चलाने का दावा करते हैं, कई मुल्कों की सत्ता भी संभालते हैं, अमेरिका के अस्पतालों में जान बचाते हैं — वही दुनिया के ज़ुल्म पर चुप क्यों रहते हैं? विदेशों में बसने वाला भारतीय समुदाय, सबसे कामयाब मगर सबसे बेअसर, असहाय क्यों नज़र आता है? क्यों हर जगह से भगाएं जाते हैं? कमाई के प्रति इतने समर्पित, खुदगर्ज हो गए, कि आत्म बल और सम्मान का सौदा कर लिया, और अब दुम दबाके दुबई से न्यू यॉर्क, डबलिन, ओटावा, कुली गिरी कर रहे हैं!
1972 में जब युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने 80,000 भारतीयों को निकाल फेंका, तब दुनिया ने चुप्पी साध ली। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने 22,000 छात्रों को निकाला, लेकिन एक बार फिर वही कहानी, कहीं न कहीं से निकाले जाते हैं स्टूडेंट्स या वर्कर्स— सबसे होनहार प्रवासी समुदाय, फिर भी अंतरराष्ट्रीय हालात का शिकार, न कि निर्माता।
आज दुनिया भर में 150 देशों में फैले 3.2 करोड़ से ज़्यादा भारतीय मूल के लोग सफलता की मिसाल हैं। अमेरिका में इनकी औसत सालाना आमदनी $1,23,700 है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। गूगल के सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला जैसे दिग्गज दुनिया के नक्शे बदल रहे हैं। ब्रिटेन में ऋषि सुनक प्रधानमंत्री रहे हैं। कनाडा में 20 सांसद भारतीय मूल के हुए हैं।
मगर जब बात सामूहिक हित की रक्षा की हो, तब यह समुदाय पानी में लाठी मारता नज़र आता है।
ज़रा यह तुलना देखिए: यहूदी प्रवासी समुदाय अमेरिका में AIPAC जैसे संगठन के ज़रिए हर साल $100 मिलियन खर्च करता है ताकि उनकी नीति और सुरक्षा प्राथमिकता बनी रहे। जब 13 डेमोक्रेट सांसदों ने इज़राइल को आर्थिक मदद का विरोध किया, तो उनमें से 6 को चुनाव में पटकनी दी गई। उधर, कनाडा में जब प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत पर इल्ज़ाम लगाया, तो 14 लाख भारतीय-कनाडाई लोगों की तरफ़ से कोई ढंग की प्रतिक्रिया नहीं आई — न प्रदर्शन, न दबाव। गोया खामोशी ही इनकी तक़दीर बन गई हो।
इस बेअसरियत की जड़ें गहरी हैं। यहूदी समुदाय जहाँ इज़राइल के लिए एकजुट रहता है, वहीं भारतीय प्रवासी टुकड़ों में बँटा है —वो पहले पंजाबी, तमिल, गुजराती है, बाद में हिन्दुस्तानी। “जहाँ सैंतीस बावन वहाँ रसोई न पके।” यही हाल है भारतीय प्रवासियों का — हर कोई अपनी ढपली, अपना राग अलापता है।
दूसरी बड़ी समस्या है — टकराव से घबराना। जब यू.एस. और यू.के. में भारतीय दूतावासों पर हमला हुआ, तो प्रवासी समुदाय का जवाब था — सन्नाटा। भारतीय मूल के लोग हार्वर्ड जैसे संस्थानों को करोड़ों डॉलर दान करते हैं — अकेले दो दानदाताओं से $75 मिलियन — मगर वहीं संस्थान भारत विरोधी कार्यक्रम कराते हैं और खालिस्तानी विचारकों को मंच देते हैं। उधर, यहूदी दानदाता फंड रोक देते हैं, जब तक कि कैंपस से यहूदी विरोधी बातें न हटा दी जाएं।
सबसे अफ़सोसनाक बात — इतनी आर्थिक हैसियत होने के बावजूद ये लोग अपना राजनयिक दबदबा नहीं बना सके। हर साल भारत को $125 अरब डॉलर के रेमिटेंस मिलते हैं, मगर इसका कोई राजनीतिक मोल नहीं बनता। जब क़तर ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को जेल में डाला, भारत बस हाथ जोड़ता रह गया। चीन होता, तो अपने नागरिक को छुड़वाने के लिए कूटनीतिक डंडा चला देता।
भारत सरकार भी दोष से अछूती नहीं। इज़राइल की 22 विदेशी शाखाएँ प्रवासी मामलों पर नज़र रखती हैं। भारत ने 2021 में अपने प्रवासी मंत्रालय को ही बंद कर दिया — बजट कटौती के नाम पर। “ऊंट के मुँह में जीरा।”
खाड़ी देशों में 80 लाख भारतीय प्रवासी आज भी लगभग गुलामी जैसी हालत में काम कर रहे हैं — पासपोर्ट ज़ब्त, अधिकार नाम की कोई चीज़ नहीं। जब पिछले साल सऊदी अरब ने 41 भारतीयों को कथित ‘ड्रग केस’ में फाँसी दी, भारत का जवाब था — एक औपचारिक विरोध पत्र।
उधर, अमेरिका के विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों से हर साल $8 अरब डॉलर कमाते हैं और वहीं “हिंदुत्व उखाड़ो” जैसे सम्मेलन कराते हैं — जो इस्लाम या यहूदी धर्म पर होते तो कब के बंद हो जाते।
अब वक़्त आ गया है — या तो संगठित हो जाइए, या मिट जाइए। सुंदर पिचाई और सत्या नडेला जैसे दिग्गज अपने कॉर्पोरेट दबाव का इस्तेमाल करें। और भारत सरकार को भी अब अपनी सोच बदलनी होगी — प्रवासी को ‘कैश मशीन’ नहीं, बल्कि ‘रणनीतिक साथी’ मानना होगा।

img

खबर भेजने के लिए व्हाट्स एप कीजिए +919412777777 todayexpress@outlook.in

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts