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‘ऑनर किलिंग: भाइयों ने आंतें बाहर निकाल डीजल से जलाया

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नई दिल्ली: शनिवार, 7 जून 2025, 6.00 PM।

एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार की लड़की, भारती यादव, और मध्यवर्गीय लड़के नीतीश कटारा के प्रेम संबंध ने एक ऐसा दुखद और वीभत्स मोड़ लिया, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। लड़की के भाइयों, विकास यादव और विशाल यादव, को यह रिश्ता कतई मंजूर नहीं था। उनकी असहमति का नतीजा नीतीश कटारा की जघन्य हत्या के रूप में सामने आया, जिसमें उन्हें इतना मारा गया कि उनकी आंतें तक बाहर आ गईं और फिर डीजल डालकर जला दिया गया। यह मामला दिल्ली की सियासी गलियों में ‘ऑनर किलिंग’ के एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गया, जिसका अंत न्याय की लंबी और कठिन लड़ाई के बाद हुआ।

प्यार की अनोखी कहानी और परिवार का विरोध कहानी एक ऐसी लड़की की थी जो बाहुबली और रसूखदार राजनीतिक परिवार में जन्मी थी, उसकी ज़िंदगी ऐशो-आराम से भरी थी। लेकिन उसे लड़के की मिडिल क्लास फैमिली की सादगी बहुत भाती थी। वह अकसर कहा करती थी—’मुझे तुम्हारा ये नॉर्मल सा, लेकिन प्यार भरा परिवार बहुत पसंद है।’ दिसंबर 2001 में, नीतीश ने अपनी मां को भारती से शादी करने की इच्छा बताई। मां ने उसे प्रभावशाली परिवार का हवाला देकर समझाया, लेकिन नीतीश ने कहा कि भारती अपने परिवार से निकलना चाहती है और इस रिश्ते के बारे में अपने माता-पिता को खुद बताएगी। योजना थी कि मार्च में भाई के चुनाव जीतने और घर में जश्न का माहौल होने पर भारती अपने परिवार को इस रिश्ते के बारे में बताएगी।

हालांकि, यह योजना धरी की धरी रह गई, क्योंकि नीतीश कटारा और भारती यादव के प्यार की भनक उसके भाई विकास यादव को लग चुकी थी। विकास और विशाल यादव को यह रिश्ता बिल्कुल पसंद नहीं था और वे इसके खिलाफ थे।

दोस्ती से प्यार तक और फिर खौफनाक रात इस कहानी की शुरुआत 1998 में हुई जब नीतीश कटारा ने आईएमटी, गाजियाबाद में एमबीए (पीजीडीबीएम) कोर्स में दाखिला लिया, जहाँ उनकी दोस्ती भारती यादव से हुई। भारती, तत्कालीन राज्यसभा सांसद डीपी यादव की बेटी थीं, जिनकी इलाके में तूती बोलती थी। जनवरी 2001 तक, नीतीश और भारती की दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी। भारती के परिवार और रिश्तेदारों, जिसमें उसकी बहन भावना यादव, मां उमलेश यादव, भाई विकास यादव और चचेरे भाई विशाल यादव शामिल थे, सभी को इस रिश्ते के बारे में पता था।

16 फरवरी 2002 को भारती की बचपन की दोस्त शिवानी गौर की शादी थी, जिसमें नीतीश और भारती दोनों ही अपने-अपने परिवारों के साथ शामिल हुए। उन्होंने शादी में साथ डांस किया और तस्वीरें भी खिंचवाईं। लेकिन आधी रात करीब 12:30 बजे के बीच, नीतीश कटारा को विकास यादव, विशाल यादव और सुखदेव यादव के साथ टाटा सफारी (नंबर PB-07H-0085) में देखा गया था। इसके बाद नीतीश कटारा को किसी ने नहीं देखा।

जली हुई लाश और न्याय की लंबी लड़ाई अगली सुबह, 17 फरवरी 2002 को एक जली हुई लाश खुर्जा के पास शिखरपुर रोड पर मिली। यह जगह शादी के वेन्यू से 80 किमी दूर थी। शव इतना क्षत-विक्षत स्थिति में था कि आंतें तक बाहर निकल आई थीं, जिससे इस वीभत्स हत्याकांड की क्रूरता का अंदाज़ा लगता है। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। नीतीश कटारा की मां नीलम कटारा ने अपने बेटे के लिए इंसाफ की लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी। यह मामला कई सालों तक चला, जिसमें गवाहों ने अपने बयान बदले, लेकिन नीलम कटारा ने हार नहीं मानी।

न्याय की राह: निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक 30 मई 2008 को, दिल्ली की एक फ़ास्ट-ट्रैक कोर्ट ने विकास और विशाल यादव को नीतीश कटारा के अपहरण और हत्या के मामले में दोषी पाया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई, साथ ही 1 लाख 60 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। नवंबर 2009 में, विकास यादव को भारती की शादी में शामिल होने के लिए जमानत मिल गई, जो एक स्थानीय व्यवसायी से तय हुई थी। यह भी सामने आया कि विकास यादव को अपनी जेल की शुरुआती दो सालों में 66 बार जमानत मिली, कई बार तो बिना किसी खास कारण के। नीतीश कटारा की मां ने जेल अधिकारियों पर यादव परिवार से मिलीभगत करने का आरोप लगाया। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी विकास यादव पर जमानत पर रहते हुए जेसिका लाल केस सहित कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने और दो बार फरार होने का आरोप लगाया था।

2 अप्रैल 2014 को, दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और विकास यादव, विशाल यादव और कॉन्ट्रैक्ट किलर सुखदेव पहलवान को उम्रकैद की सजा सुनाई। दोषियों को मौत की सजा दिलवाने के लिए कटारा की मां और अभियोजन पक्ष ने हाई कोर्ट में अपील दायर की, जिस पर 25 अप्रैल 2014 को सुनवाई होनी थी।

6 फरवरी 2015 को, दिल्ली हाई कोर्ट ने विकास यादव और उसके चचेरे भाई विशाल यादव को नीतीश कटारा की हत्या के लिए 30 साल की जेल की सजा सुनाई। 18 अगस्त 2015 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। अंततः, 3 अक्टूबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने विशाल और विकास यादव को 25 साल की जेल की सजा सुनाई। दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले हत्या के लिए 25 साल और सबूत नष्ट करने के लिए 5 साल की सजा सुनाई थी (जो एक के बाद एक चलनी थीं), लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी, जिससे भाइयों को 30 की बजाय 25 साल जेल में बिताने होंगे। इस मामले में तीसरे दोषी, सुखदेव पहलवान को 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई। इस तरह, सालों तक चले इस केस का अंत हुआ और दोषियों को उनके किए की सजा मिली। कोर्ट ने यह भी साफ़ कर दिया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वो कितना भी ताकतवर क्यों न हो।

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