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हवाई सफर का सच: जानलेवा लापरवाही और सरकारी ढकोसले!

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  • हवाई सफर का सच: जानलेवा लापरवाही और सरकारी ढकोसले!
  • न हेलीकॉप्टर, न हवाई जहाज, कोई सेफ नहीं !!!


अहमदाबाद एयर इंडिया त्रासदी के बाद, एक पूरा पंडोरा बॉक्स, आफत का पिटारा खुल चुका है। एक्सपर्ट्स भी भौंचक्के है कि कैसे अचानक भारत की हवाई सेवाएं खौफनाक दिक्कतों के भंवर में फंसती जा रही हैं। कंज्यूमर कॉन्फिडेंस डगमगा रहा है, टिकट कैंसिल हो रहे हैं, प्राइस गिर रही हैं। सवाल ये है कि अब तक ये हवाई तंत्र चल कैसे रहा था जब गड़बड़ियों और लापरवाही का बेइंतहा सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है, एक्चुअली —सरकारी डींगों के पीछे छुपा एक बदहवास मंज़र हमारे सामने है। यह क्षेत्र गड़बड़झाला है: टेक्निकल खराबी, जर्जर इंफ्रास्ट्रक्चर, ढीली निगरानी, बेपरवाह स्टाफ, और यात्री सुरक्षा की अनदेखी। मौतें हो रही हैं, और शिकायतों का आंकड़ा हवाई जहाज़ों से भी ऊंचा उड़ रहा है—और “राष्ट्रीय विमान सेवा” एयर इंडिया इसमें सबसे आगे!
बड़ा सवाल ये है कि क्या एयर इंडिया के कुछ अधिकारी ही जिम्मेदार हैं, या फिर पूरा राजनैतिक तंत्र दोषी है। मंत्री क्यों नहीं स्तीफ़ा देते।
अब तक सरकार अपनी “कामयाबियां” गिनाती रही है—2014 के 74 एयरपोर्ट 2023 में 148 हो गए, UDAN योजना ने 469 रूट्स जोड़े, दिल्ली-मुंबई एयरपोर्ट को “कार्बन अक्रेडिटेशन” मिला। मगर ये सब ऊपरी दिखावा है, जैसे नासूर पर चिपकाया प्लास्टर। हक़ीकत ये है कि भारत का आसमान एक बड़े हादसे का मैदान बन चुका है।

टेक्निकल खराबी: हर उड़ान जुआ!

इंजन फेल, हाइड्रॉलिक लीक, क्रैक्ड विंडशील्ड, इमरजेंसी लैंडिंग—अब ये आम बात हो गई है। 2022 में DGCA ने 400 से ज़्यादा सुरक्षा घटनाएं दर्ज कीं, और ये संख्या बढ़ती जा रही है। ये छोटी-मोटी गड़बड़ियाँ नहीं, बल्कि सिस्टम की सड़ांध है। पुराने जहाज़, ढुलमुल मरम्मत, और कंजूस एयरलाइंस—यही नियम बन गया है। एयर इंडिया, इंडिगो, स्पाइसजेट पर बार-बार उंगलियां उठती हैं, मगर जुर्माना मज़ाक़िया है—कुछ करोड़ों की झिड़की, जो कंपनियों के लिए फुटकर खर्च है। DGCA, जो “वॉचडॉग” होना चाहिए, वो बेज़ार और बेबस है—एडवाइजरी जारी करता है, मगर एयरलाइंस उसे हवा में उड़ा देती हैं। जवाबदेही? बिल्कुल नदारद!

प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी जो पटना नई दिल्ली के बीच हवाई यात्रा करते रहते हैं, का कहना है कि सरकार 148 एयरपोर्ट का ढिंढोरा पीटती है, मगर ज़्यादातर तो बिना सुविधाओं के “हवाई मैदान” हैं। UDAN के छोटे एयरपोर्ट्स में नेविगेशन सिस्टम, ट्रेंड स्टाफ, या फायर सेफ्टी तक नहीं। दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े एयरपोर्ट भी दबाव में चरमराते हैं—टूटी छतें, लंबी कतारें, सामान का इंतज़ार। यात्रियों को जानवरों की तरह ठेल दिया जाता है, और थके-हारे स्टाफ शिकायतों पर झल्लाते या सिर्फ़ कंधे उचकाते हैं। नतीजा? यात्री घंटों फंसे रहते हैं, मेडिकल इमरजेंसीज़ नज़रअंदाज़ होती हैं, और परिवार उन मौतों पर रोते हैं जो टाली जा सकती थीं। हर “मेडे” कॉल एक सन्न कर देने वाली याद दिलाती है कि हम एक और त्रासदी के कितने करीब हैं।”
UDAN योजना: सपनों का झुनझुना!
सरकार UDAN को “गेम-चेंजर” बताती है, मगर ये अधपका सपना है। हाँ, 74 एयरपोर्ट जुड़े, मगर कई रूट्स बेमानी हैं—कम यात्री या ज़्यादा खर्च के चलते एयरलाइंस पीछे हट रही हैं। “सस्ते टिकट”? एक क्रूर मज़ाक, जब इन रूट्स के किराये बड़ी एयरलाइंस जितने ही हैं। “टिकाऊपन” के दावे? झूठे, जब देरी के दौरान जहाज़ जमीन पर ईंधन जलाते हैं, और सुरक्षा से ज़्यादा “दिखावे” पर ध्यान दिया जाता है। यह विकास झूठी नींव पर खड़ा है—बढ़े-चढ़े आंकड़े और अनदेखी की गई चेतावनियों पर।
कोई बड़ा हादसा होता है, DGCA हड़बड़ी में निर्देश जारी करता है, एयरलाइंस सुधार का वादा करती हैं—और फिर सब ठंडे बस्ते में। 2020 के कोझीकोड क्रैश (21 मौतें) ने रनवे सुरक्षा और पायलट ट्रेनिंग की लापरवाही उजागर की, मगर कुछ नहीं बदला। जनता का गुस्सा ठंडा पड़ता है, और सब फिर से पुराने ढर्रे पर। एयर इंडिया का रिकॉर्ड—कैंसिलेशन, देरी, मिड-एयर खतरे—इसी बेरुख़ी की मिसाल है। डिब्बा खुल चुका है, और अब सरकारी प्रोपेगैंडा इसे बंद नहीं कर सकता।
बंगलुरु एयरपोर्ट से फ्रिक्वेंटली यात्रा करने वाले युवा व्यवसाय जग गुप्ता कहते हैं, अब जरूरत है, सख़्त कानून, नए जहाज़, मज़बूत ट्रेनिंग, और काम करता इंफ्रास्ट्रक्चर। जब तक ये नहीं होता, हर टेकऑफ़ एक जुआ है, और हर लैंडिंग पर सांस थमी रहती है।

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