Shopping cart

Magazines cover a wide array subjects, including but not limited to fashion, lifestyle, health, politics, business, Entertainment, sports, science,

TnewsTnews
  • Home
  • Uttar Pradesh
  • स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत और निर्मल गंगा: अरबों खर्च ?
Uttar Pradesh

स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत और निर्मल गंगा: अरबों खर्च ?

Email :

स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत और निर्मल गंगा: अरबों खर्च ?
नदियाँ रो रही हैं, शहर सिसक रहे हैं: सरकारी मिशनों की नाकाम कहानी


बृज खंडेलवाल
25 जून 2025


दस साल पहले सत्ता के गलियारों में बड़े ठाठ से घोषणाएं हुई थीं—गंगा नदी को निर्मल बनाएंगे, भारत को स्वच्छ करेंगे, और सौ शहरों को स्मार्ट बना देंगे। जनता ताली बजाती रही, उम्मीदें पालती रही। लेकिन अब जब ज़मीनी सच्चाई से पर्दा उठ रहा है, तो लगता है कि सपने और हकीकत के बीच का फासला कम नहीं हुआ है।

गंगा, जो आस्था का प्रतीक है, आज भी जहर उगल रही है। नमामि गंगे मिशन को लेकर खूब ढोल-नगाड़े बजे थे। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने इसे “भारत की जीवनरेखा” कहकर इसे पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। करीब 40,000 करोड़ रुपये बहा दिए गए, लेकिन गंगा की धारा में अब निर्मलता नहीं, केवल निराशा बह रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि गंगा का 60% पानी स्नान योग्य भी नहीं। वाराणसी जैसे तीर्थ में 80% सीवेज बिना ट्रीटमेंट सीधे गंगा में जा रहा है। हरिद्वार से नीचे गंगा की धारा सिकुड़कर केवल 30% रह गई है। और उत्तराखंड की टैनरियां तथा यूपी के रासायनिक कारखाने मानो सरकारी नियमों पर थूकते हैं—न जाँच, न कार्रवाई। कहने को “पुनर्जीवन”, असल में तस्लीम करो कि गंगा आज भी तड़प रही है। उधर यमुना नदी, समूचे ब्रज मंडल में दर्द से कराह रही है।

दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट, स्वच्छ भारत मिशन भी एक बड़ी कथा बना दिया गया। 2014 में जब इसकी शुरुआत हुआ तो कहा गया कि भारत को खुले में शौच से मुक्त कर देंगे। आंकड़े कहें कि 10 करोड़ से ज़्यादा शौचालय बने, भारत 2019 तक ODF (Open Defecation Free) हो गया। मगर ज़मीन पर जाके देखो—राजस्थान, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में आज भी ग्रामीण खुले में शौच करने को मजबूर हैं। NSSO की रिपोर्ट ने तो पोल खोलकर रख दी—40% ग्रामीण अब भी शौचालयों से दूर हैं। क्यों? क्योंकि शौचालय बने तो सही, लेकिन बिना पानी और सीवरेज सिस्टम के वो कब्रगाह जैसे गड्ढे बन गए। और जो दलित मैला उठाते हैं, वो अब भी सीवरों में घुटकर मर रहे हैं—2023 में दिल्ली में तीन सफाईकर्मी ऐसे ही मरे। 2014 से अब तक 600 से ज़्यादा सफाईकर्मियों की मौत हो चुकी है, लेकिन मैनुअल स्कैवेंजिंग पर बैन केवल कागज़ों में है।

अब बात करें उस भव्य सपने की, जिसका नाम था—स्मार्ट सिटी मिशन। 2015 में शुरू हुआ, और सौ शहरों को “विश्वस्तरीय” बनाने का वादा किया गया। डिजिटल इंडिया, स्मार्ट रोड, वाई-फाई जोन, सोलर एनर्जी—सबकुछ सुनने में काबिल-ए-तारीफ़। लेकिन हक़ीक़त में, ये मिशन ठेकेदारों की चांदी बन गया। 7000 से ज़्यादा परियोजनाएँ शुरू तो हुईं, पर CAG की रिपोर्ट बताती है कि 70% प्रोजेक्ट तय समय पर पूरे ही नहीं हुए। 12,000 करोड़ रुपये बिना टेंडर के बांटे गए, कई शहरों में सेंसर लगे तो ज़रूर, पर एक साल में ही टूट गए।

“स्मार्ट” का मतलब अगर सिर्फ फूलदान लगाना और मोबाइल ऐप बनाना है, तो फिर यह देश के साथ एक मज़ाक है। आज देश के शहरों की हालत यह है कि न सफाई है, न ट्रैफिक का हल, और न ही कोई जवाबदेही। मिशन चुपचाप बंद हो गया, लेकिन बर्बादी की दास्तां शहरों की दीवारों पर अब भी लिखी है।

तीनों मिशनों में एक बात साझा है—सियासी दिखावा और अफसरशाही का बेलगाम खेल। पैसा खर्च हुआ, नतीजे नदारद। योजनाएं बनीं, पर लागू करने का सिस्टम सड़ गया। कैपेसिटी बिल्डिंग, वर्कशॉप्स, सेमिनार—सरकारी तामझाम पर अरबों खर्च हुए, लेकिन आम आदमी की ज़िंदगी वैसी की वैसी रही।

सरकारें अब “अमृत 2.0”, “गंगा अक्षय”, “स्वच्छ भारत 2.0” जैसे नए नामों से फिर वही सपने बेच रही हैं। लेकिन जिन ज़ख्मों पर मरहम न लगाया गया हो, उन पर फिर से मेकअप करने से क्या होगा? गाँवों की गलियाँ अब भी गंदगी से अटी पड़ी हैं, शहरों में नालियाँ उफान मारती हैं और नदियाँ अब सिर्फ गंदे नाले बनकर रह गई हैं। गंगा जैसी पवित्र धारा अब अफ़सोस और शर्म की प्रतीक बन चुकी है।
सच में—”ना गंगा साफ़ हुई, ना भारत; बस वादों की रंगोली बिछती रही और हकीकत की मिट्टी कुचली जाती रही।” योजनाओं की चकाचौंध में सच्चाई का सूरज कहीं गुम हो गया है।

बृज खंडेलवाल, (1972 बैच, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन,) पचास वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता और शिक्षण में लगे हैं। तीन दशकों तक IANS के सीनियर कॉरेस्पोंडेंट रहे, तथा आगरा विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान के पत्रकारिता विभाग में सेवाएं दे चुके हैं। पर्यावरण, विकास, हेरिटेज संरक्षण, शहरीकरण, आदि विषयों पर देश, विदेश के तमाम अखबारों में लिखा है, और ताज महल, यमुना, पर कई फिल्म्स में कार्य किया है। वर्तमान में रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक हैं।

img

खबर भेजने के लिए व्हाट्स एप कीजिए +919412777777 [email protected]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts