Shopping cart

Magazines cover a wide array subjects, including but not limited to fashion, lifestyle, health, politics, business, Entertainment, sports, science,

TnewsTnews
  • Home
  • Agra
  • पनवारी कांड: 34 साल बाद 35 आरोपी दोषी करार, एक की मौत और 150 से अधिक घायल हुए थे
Agra

पनवारी कांड: 34 साल बाद 35 आरोपी दोषी करार, एक की मौत और 150 से अधिक घायल हुए थे

Email :

आगरा: आगरा के चर्चित पनवारी कांड से जुड़ी हिंसा के मामले में 34 साल बाद आखिरकार न्याय की प्रक्रिया अपने अंजाम पर पहुंची है। वर्ष 1990 में अनुसूचित जाति और जाट समाज के लोगों के बीच हुए भीषण संघर्ष से जुड़े इस मामले में बुधवार को एससी-एसटी कोर्ट ने 35 आरोपियों को दोषी करार दिया है। इन दोषियों को 30 मई को सजा सुनाई जाएगी। इस हिंसा में एक महिला की मौत हो गई थी और 150 से अधिक लोग घायल हुए थे। मुकदमे की सुनवाई के दौरान 31 घायल लोगों की गवाही इस फैसले में अहम साबित हुई। हालांकि, 15 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया, जबकि मुकदमे की सुनवाई के दौरान 22 आरोपियों की मौत हो चुकी है।

हिंसा का कारण और घटनाक्रम

यह विवाद 22 जून 1990 को गांव पनवारी में अनुसूचित जाति के परिवार की बेटी की बारात चढ़ाने को लेकर भड़का था। चोखेलाल जाटव की बेटी मुंद्रा की बारात आनी थी। 21 जून को जाट समाज के कुछ लोगों ने बारात चढ़ाने का विरोध किया, जिसके कारण उस दिन बारात नहीं चढ़ सकी। अगले दिन, 22 जून को, पुलिस प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में बारात चढ़ाई जा रही थी, तभी लोगों की भीड़ ने एक बार फिर बारात को रोकने का प्रयास किया।

पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप फायरिंग हुई। इस फायरिंग में गोली लगने से सोनी राम जाट की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी। 24 जून 1990 को दोपहर एक बजे गांव अकोला में अनुसूचित जाति और जाट समाज के लोग आमने-सामने आ गए। लगभग डेढ़ घंटे तक चले इस भीषण बवाल में एक महिला की मौत हो गई और 150 से अधिक लोग घायल हुए। इस दौरान कई राहगीर भी हिंसा की चपेट में आ गए थे।

कानूनी कार्यवाही और फैसले की गाथा

एक राहगीर की सूचना पर थाना कागारौल के तत्कालीन एसओ ओमप्रकाश राणा ने 200 से अधिक लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। गहन विवेचना के बाद, 72 आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया गया।

दोषी करार दिए गए और बरी हुए आरोपी:

कोर्ट ने साक्ष्य और गवाहों के आधार पर अकोला निवासी जयदेव, राजेंद्र, पप्पू, तेजवीर, बन्नो, जीतू, कुंवरपाल, कल्लो, श्यामवीर, लीलाधर, भूपेंद्र, सत्तो, महेश, नाहर, रामवीर, सुरेंद्र, रामजीत, निरंजन, हरभान, पूरन सिंह, देवी सिंह पुत्र नवाब, उम्मेद सिंह, विज्जो, रामजीत, महेंद्र, संतराम, सुजान, सौदान, महतरव, दंगल, रज्जो, संपत और तीन अन्य को दोषी माना है। सभी दोषियों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है, हालांकि इनमें से तीन लोग हाजिर नहीं हुए थे। वहीं, कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए अकोला और नगला श्याम निवासी राजो, भूरा उर्फ निरोत्तम, करतार, बलवीर, बनय सिंह, सूखे, बीरी सिंह, रामपाल, रग्गो, देवी सिंह, मांगे लाल, किशन पाल, शिब्बो और अन्य दो आरोपियों सहित कुल 15 लोगों को बरी कर दिया।

अन्य संबंधित मामले:

पनवारी कांड में हुए बवाल से संबंधित एक और मामला थाना सिकंदरा में भी दर्ज हुआ था। 32 साल की सुनवाई के बाद 4 जुलाई 2022 को विशेष न्यायाधीश एमपी-एमएलए कोर्ट ने उस मामले में फैसला सुनाया था। साक्ष्य के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए वर्तमान भाजपा विधायक चौधरी बाबूलाल, मुन्नालाल, रामवीर सिंह, रूप सिंह, देवी सिंह, शिवराम, श्यामवीर, सत्यवीर सहित 8 लोगों को बरी कर दिया गया था।

प्रमुख घटनाक्रम:

  • 21 जून 1990: पुलिस की मौजूदगी में भी बारात चढ़ाने का विरोध, बारात नहीं चढ़ पाई।
  • 22 जून 1990: बारात चढ़ाने के दौरान बवाल, गोली लगने से सोनी राम जाट की मौत।
  • 24 जून 1990: थाना कागारौल के अकोला में 200 से अधिक लोगों के खिलाफ केस दर्ज।
  • 1994: कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल।
  • 28 मई 2025: कोर्ट ने 35 आरोपियों को दोषी करार दिया।
  • 30 मई 2025: दोषियों को सजा सुनाई जाएगी।

फैसले के बाद गांव में सन्नाटा:

कोर्ट का फैसला सुनते ही मौजूद सभी 32 दोषियों की आंखों से आंसू छलक उठे। अकोला निवासी देवी सिंह जब पुलिसकर्मियों द्वारा कोर्ट से जेल ले जाए जा रहे थे, तो वे रो पड़े और बोले, “मैंने तो काऊको कछू ना बिगाड़ो मोये जेल क्यों ले जाइ रहे हो, जा दिन मारपीट भई काई मैं तो खेत पे काम कर रहो हतो।” इस दौरान उनके साथ कोई परिजन मौजूद नहीं था। पुलिसकर्मियों ने उन्हें पानी पिलाया और समझाया, जिसके बाद उन्हें कुछ तसल्ली मिली।

पनवारी कांड की आंच 24 जून 1990 को अकोला के थोक ऊदर गांव तक पहुंच गई थी, जहाँ दलित बस्तियों में हमला बोला गया था। बुधवार को कोर्ट द्वारा आरोपियों को दोषी करार दिए जाने के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया है। कई दोषियों के घरों में चूल्हे भी नहीं सुलगे हैं। परिजनों का कहना है कि पनवारी की घटना को राजनीतिक रूप से तूल देकर उन्हें बेवजह फंसाया गया है। यह फैसला 34 साल बाद आया है, जो भारतीय न्याय प्रणाली की लंबी प्रक्रिया को भी दर्शाता है।

img

खबर भेजने के लिए व्हाट्स एप कीजिए +917579990777 [email protected]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts