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न खेत बचे, न काम: ग्रामीणों की जिंदगी डगमगाई

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24 June 2025, 7:56:36 PM. Agra, Uttar Pradesh

धनौली, बल्हेरा और अभयपुरा गांवों के हजारों खेतिहर मजदूरों की जिंदगी इस समय गहरे संकट से गुजर रही है। जहां एक ओर सिविल एयरपोर्ट के लिए हुई भूमि अधिग्रहण ने उनकी रोज़ी-रोटी छीन ली, वहीं दूसरी ओर लगातार हो रही बारिश और जलभराव ने बची-खुची संभावनाएं भी ध्वस्त कर दी हैं। सिविल सोसायटी आगरा ने सरकार से मांग की है कि प्रभावित ग्रामीणों को वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए तुरंत कार्ययोजना बनाई जाए।

सिविल सोसायटी का कहना है कि सिविल एन्क्लेव निर्माण के कारण जिन गांवों की भूमि अधिग्रहित की गई, वहां के श्रमिकों को कोई विकल्प नहीं दिया गया। खेतिहर मजदूरों की हालत बेहद दयनीय है। उनके पास ना अब खेत हैं, ना काम। मानसून शुरू हो चुका है, लेकिन नाले-नालियों की सफाई न होने के कारण जलभराव से हालात और बिगड़ चुके हैं। कई जगहों पर सड़कों पर बहता गंदा पानी सामान्य जनजीवन को भी प्रभावित कर रहा है।

फार्म मजदूरों के लिए हालात संकटपूर्ण

अभयपुरा, बल्हेरा और धनौली गांवों के खेतिहर मजदूर आज हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं। खेती बंद हो चुकी है और वैकल्पिक आजीविका की कोई योजना ज़मीन पर नहीं है। इन गांवों में जिन लोगों की आजीविका पूरी तरह से खेतों और उनसे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर थी, वे अब मज़दूरी के लिए भटकने को मजबूर हैं।

जलभराव बना मुख्य संकट

बारिश के चलते वर्षाजल का निकास ठप हो चुका है। नाले उफान पर हैं और गलियों-सड़कों में पानी भर चुका है। धनौली-मलपुरा नहर पुल तक पानी के निकास की कोई प्रभावी योजना नहीं है। स्थानीय जल निकासी की जो परंपरागत संरचनाएं थीं, वे या तो नष्ट हो चुकी हैं या अनुपयोगी बना दी गई हैं।

स्थायी समाधान की मांग

सिविल सोसायटी ने कहा है कि वर्षा जल के स्थायी निस्तारण के लिए स्टैंडर्ड सॉल्यूशन लागू किए जाएं। इसमें संप पंप प्रणाली, 35 MLD क्षमता का एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट), और साफ किए गए पानी को ग्रामीण क्षेत्र के पारंपरिक पोखरों व तालाबों तक पहुंचाने की व्यवस्था शामिल होनी चाहिए। इससे खेती, पशुपालन और स्थानीय जल स्रोतों को भी संबल मिलेगा।

परंपरागत जलस्रोतों का पुनर्जीवन जरूरी

यदि एसटीपी से ट्रीटेड पानी की गुणवत्ता उपयुक्त हो, तो इसका प्रयोग मलपुरा नहर में भी किया जा सकता है, जिससे सिंचाई में सहूलियत हो। प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि पुराने तालाब-पोखरों को पहले भरा जाए, जिससे क्षेत्रीय जलसंतुलन बहाल हो और पशुपालन जैसे व्यवसायों को दोबारा गति मिले।

मुआवजा तो मिला, पर श्रमिकों का क्या?

भूमि अधिग्रहण के बदले जिन किसानों को मुआवजा मिला, उन्होंने तो नई ज़िंदगी की राह पकड़ ली, लेकिन खेतिहर मजदूरों के सामने अब भी अंधकार है। खेती बंद होने से उन्हें पारंपरिक कार्य भी नहीं मिल रहे। सरकार को चाहिए कि इन गांवों के कृषि श्रमिकों का व्यापक सर्वे करवाकर उनके लिए कार्य योजना तैयार करे।

सिविल सोसायटी का सुझाव

सिविल सोसायटी आगरा ने VV Giri National Labour Institute, Noida को पत्र भेजकर इस क्षेत्र में श्रमिक संकट के अध्ययन की अपील की है। संस्था से अपेक्षा है कि वह विस्तृत अध्ययन कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपे और श्रमिक हित में समाधान सुझाए।

जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा

सिविल सोसायटी ने क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों से आग्रह किया है कि वे इस विषय को विधानसभा के मानसून सत्र में उठाएं और प्रभावित गांवों के लिए पुनर्वास व विकास योजनाएं लागू करवाएं। साथ ही, जिन विद्यालयों और सार्वजनिक स्थलों को एयरपोर्ट निर्माण में हटाया गया है, उनके पुनर्निर्माण का कार्य भी तुरंत शुरू कराया जाए।

स्थानीय प्रशासन से स्थलीय निरीक्षण की मांग

सिविल सोसायटी ने मुख्य विकास अधिकारी से आग्रह किया है कि किसी सक्षम अधिकारी को स्थलीय निरीक्षण के लिए भेजा जाए, ताकि जमीनी स्थिति का मूल्यांकन कर शीघ्र समाधान की दिशा में कदम उठाए जा सकें।

अधिग्रहण और जलभराव की दोहरी मार झेल रहे धनौली, बल्हेरा और अभयपुरा गांवों के लोग अब भी सरकार की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। रोजगार, जलनिकासी और सामाजिक पुनर्वास की आवश्यकता अब प्राथमिक हो चुकी है। सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस संकट से उबरने की पहल करनी होगी।




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