आगरा। राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के आगरा चैप्टर द्वारा दिनांक 18 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक का मुख्य विषय भारतीय सेना द्वारा पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले के जवाब में की गई कार्रवाई, जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया, के सामरिक और रणनीतिक महत्व पर गहन परिचर्चा करना था। उल्लेखनीय है कि यह हमला पाकिस्तान की शह पर लश्करे तैयबा से जुड़े आतंकी गुट टीआरएफ द्वारा पहलगाम में 28 सिविलियन नागरिकों की उनकी धार्मिक पहचान कर खौफनाक तरीके से की गई हत्याओं के बाद हुआ था।
महामंत्री डॉ. दिवाकर तिवारी ने रखा विषय प्रवर्तन:
बैठक की शुरुआत करते हुए मंच के महामंत्री डॉ. दिवाकर तिवारी ने परिचर्चा का विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने पहलगाम हमले के बाद आम शहरी के मन में उठ रहे सवालों, संशयों, विभिन्न टीवी चैनलों और अन्य समाचार माध्यमों द्वारा फैलाई गई सूचनाओं की प्रमाणिकता जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं को उठाया। डॉ. तिवारी ने युद्ध के रणनीतिक पक्ष, हमारी सेना द्वारा दुश्मन को पहुंचाए गए नुकसान की प्रकृति और अचानक हुए सीजफायर के निर्णय जैसे जटिल विषयों को फोरम में शामिल रक्षा विशेषज्ञों और उपस्थित सदस्यों के समक्ष विचार-विमर्श के लिए रखा।
ब्रिगेडियर मनोज कुमार जी:
‘ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक ‘ट्रेलर’, ‘पिक्चर अभी बाकी’:
मंच के संरक्षक और जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर मनोज कुमार जी ने अपने संबोधन में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को भारतीय सेना की दृढ़ इच्छाशक्ति और सामरिक क्षमता का परिचायक बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना ने 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक में दुश्मन को ‘पोस्टर’, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट स्ट्राइक में ‘टीजर’ और अब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में अभी केवल ‘ट्रेलर’ ही दिखाया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इतने भर से ही पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए हैं और उसे सामरिक दृष्टि से बेहद गंभीर और अंदरूनी जगहों पर चोट लगी है, लेकिन असली ‘पिक्चर दिखाना अभी बाकी है’।
मीडिया में उड़ रही न्यूक्लियर साइट के हिट होने संबंधी अटकलों को ब्रिगेडियर मनोज कुमार ने सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय सेना के टारगेट कभी चूकते नहीं हैं, उनका निशाना अत्यंत सटीक था। उन्होंने गुप्त भाषा में संकेत दिया कि शायद ‘खजाना किसी और का था’ और पाकिस्तान तो केवल ‘चौकीदार’ की हैसियत से परेशान था, लेकिन इस हमले में असली मालिक कोई और ही लगता है जिसका नुकसान हुआ है। उन्होंने भारतीय सेना की तकनीकी श्रेष्ठता पर भी जोर दिया और कहा कि इस सीमित युद्ध का तकनीकी पक्ष देखें तो हम सदैव दुश्मन से उन्नत रहे हैं और 21वीं सदी में हमने अपनी क्षमताओं को पूरे विश्व के सामने प्रमाणित किया है।
कर्नल जीएम खान:
पाकिस्तान आतंक की फैक्ट्री, रणनीतिक घेराव आवश्यक:
मंच के उपाध्यक्ष एवं रक्षा विशेषज्ञ कर्नल जीएम खान ने पाकिस्तान के अंदरूनी हालात, विशेषकर बलूचिस्तान में आर्मी पर हो रहे हमलों के मद्देनजर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान वो देश है जहां मानवीय मूल्य हैं ही नहीं, वो एक ‘आतंक की फैक्ट्री’ है। उन्होंने बताया कि आतंकवाद वहां का प्रमुख रोजगार है और पाकिस्तान इसी के नाम पर अपनी अर्थव्यवस्था चलाता आया है। कर्नल खान ने सुझाव दिया कि ऐसे देश को सीधे युद्ध के बजाय हमें रणनीतिक रूप से घेरकर उसके अस्तित्व को खत्म करने पर ध्यान देना चाहिए।
इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान में चल रहे अलगाववादी आंदोलनों को भारत द्वारा नैतिक समर्थन दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने विशेष रूप से बलूचिस्तान और सिंधु प्रदेश में चल रहे आंदोलनों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह समय बेहद उचित था जब हमें बलूचिस्तान की सरकार को मान्यता देनी चाहिए थी और सरकार को अब इसमें देरी नहीं करनी चाहिए। साथ ही सिंधु प्रदेश में चल रहे आंदोलन को भी हमें सपोर्ट करना चाहिए। कर्नल खान ने पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) पर भी सरकार को शीघ्र निर्णय लेने का आग्रह किया, क्योंकि वह हमारा ही हिस्सा है। उन्होंने तिब्बत की निर्वासन सरकार का उदाहरण दिया जो भारत से चल रही है और तिब्बत की एक सेना भी भारत में प्रशिक्षित होकर तैनात है, और कहा कि ऐसे ही हमें पाकिस्तान से अलग होने की चाह रखने वाले राज्यों के आंदोलनकारियों को सशक्त करने की आवश्यकता है।
गौरीशंकर सिंह सिकरवार:
वैश्विक शक्तियां बना रही हैं आतंकवाद को व्यवसाय:
संगोष्ठी में समाजवादी चिंतक एवं विचारक गौरीशंकर सिकरवार ने आधुनिक युग में आतंकवाद और युद्ध के वैश्विक परिदृश्य पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वैश्विक शक्तियों ने आतंकवाद और युद्ध को एक व्यवसाय का रूप दे दिया है। आतंकवाद और युद्ध का खौफ पीड़ित देशों को हथियार खरीदने के लिए मजबूर करता है, जिसका सीधा लाभ इनके निर्माता देशों को होता है। उन्होंने कहा कि विश्व में कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो अदृश्य रहते हुए इस विचार को पोषित करती हैं। वैश्विक शांति उन्हें बेचैन कर देती है; वे चाहते हैं कि दुनिया हमेशा इसमें उलझी रहे और वे व्यापार के ऐसे रास्ते खोजते रहें जिनसे आम नागरिक को कोई सीधा लाभ नहीं है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि एक दिन प्रकृति स्वयं ऐसे लोगों का सर्वनाश करेगी।
प्रोफेसर राजीव उपाध्याय:
तुर्की का साथ सबक, मित्रों-शत्रुओं की पहचान जरूरी:
मंच के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं निदेशक केएनआईटी सुल्तानपुर प्रोफेसर राजीव उपाध्याय ने तुर्की द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी पाकिस्तान का साथ दिए जाने की घटना को भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सबक बताया। उन्होंने कहा कि इस घटना से हमें सीख मिलती है कि हमें अपने वास्तविक मित्रों और दुर्भावना रखने वाले शत्रुओं की पहचान बहुत बारीकी से करनी चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि भारत ने विपरीत परिस्थितियों में भी तुर्की की मदद की है, चाहे वह कोविड वैक्सीन देना हो या भूकंप के समय मेडिकल सहायता, मशीनरी, डॉक्टर और सेना भेजकर मदद करना हो। उन्होंने यह भी बताया कि भारत तुर्की की अर्थव्यवस्था में पर्यटन ही नहीं, अन्य व्यापारिक गतिविधियों और शैक्षिक संस्थानों के जरिए भी बड़ा योगदान देता आया है। ऐसे में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), रुड़की विश्वविद्यालय, और चंडीगढ़ विश्वविद्यालय द्वारा तुर्की सरकार के साथ हुए अनुबंधों को निरस्त करने के निर्णय की सराहना करते हुए उन्होंने इसे एक ‘स्ट्रांग मैसेज’ करार दिया।
अमेरिका से विडिओ कॉल से जुड़े अतुल चंद्र सरीन ने “अमेरिका का आम जनमानस ऑपरेशन सिंदूर के बारे मे क्या सोचता है”, की विस्तृत रिपोर्ट साझा की।
कार्यक्रम के अंत मे मोहम्मद रऊफ खान ने सबका धन्यवाद दिया और वहाँ भारी संख्या मे मौजूद श्रोताओं मे ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर मिष्ठान वितरण किया।
बैठक में मंच के वरिष्ठ सदस्य ठाकुर पवन सिंह, मोहम्मद रऊफ खान, सोमवीर प्रधान सहित राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के आगरा चैप्टर के अनेक सदस्य उपस्थित रहे। राष्ट्रीय सुरक्षा के अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर हुई यह परिचर्चा विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालने और उपस्थित सदस्यों के लिए ज्ञानवर्धक साबित हुई। बैठक का समापन देश की सुरक्षा और अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता दोहराते हुए हुआ।















