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सिंधु जल विवाद: बिलावल की गीदड़भभकी, क्या युद्ध की ओर बढ़ रहे भारत-पाकिस्तान?

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Monday, 23 June 2025, 7:56:36 PM. आगरा।

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर तनाव एक बार फिर चरम पर है। इस बार पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने बेहद आक्रामक रुख अपनाते हुए भारत को सीधे तौर पर युद्ध की चेतावनी दी है। यह धमकी भारत के गृह मंत्री अमित शाह के उस स्पष्ट बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने सिंधु जल संधि को बहाल करने के भारत के किसी भी इरादे को सिरे से खारिज कर दिया था। शाह के बयान ने पाकिस्तान में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं, और वहां के विदेश मंत्रालय ने भी इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। यह पूरा घटनाक्रम दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच दशकों पुराने जल-बंटवारे के समझौते को लेकर एक नई और खतरनाक अनिश्चितता पैदा कर रहा है।

बिलावल की खुली चेतावनी: “पानी या खून”

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने एक सार्वजनिक रैली में बेहद भड़काऊ बयान देते हुए कहा कि यदि सिंधु जल संधि को बहाल नहीं किया गया, तो पाकिस्तान “हमला करते हुए सभी छह नदियों पर कब्जा कर सकता है।” उन्होंने साफ तौर पर कहा, “भारत के पास केवल दो विकल्प हैं। या तो वह सिंधु जल संधि के लिए सहमत हो और इसे चलने दे या फिर पाकिस्तान से युद्ध के लिए तैयार रहे।” यह पहली बार नहीं है जब बिलावल ने सिंधु जल समझौते पर इतनी आक्रामक भाषा का प्रयोग किया है। इससे पहले भी वह “या तो नदियों में पानी बहेगा या भारत में खून” जैसे भड़काऊ बयान दे चुके हैं, जो दोनों देशों के बीच संबंधों की नाजुकता को दर्शाता है। उनके इस तरह के बयान क्षेत्र में पहले से ही अस्थिर माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बना रहे हैं।

अस्तित्व की लड़ाई और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग

बिलावल भुट्टो ने अपने बयान में जोर दिया कि पाकिस्तान शांति चाहता है, लेकिन भारत द्वारा सिंधु समझौते पर की गई कार्रवाई को वह “युद्ध की घोषणा” के समान मानता है। उन्होंने इस मुद्दे को पाकिस्तान के लिए “अस्तित्व की लड़ाई” बताया और कहा कि इसके लिए “किसी भी हद तक जाया जाएगा।” भुट्टो ने आगे कहा, “हम सिंधु सभ्यता के संरक्षक हैं और इसकी रक्षा करेंगे। इसके लिए युद्ध के रास्ते पर जाने से भी पीछे नहीं हटेंगे।” उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने का आह्वान करते हुए कहा कि यदि “पाकिस्तान का पानी रुका तो युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।” यह बयान पाकिस्तान की गहरी चिंता और इस मुद्दे को लेकर उसकी राष्ट्रीय संवेदनशीलता को दर्शाता है। पाकिस्तान लगातार इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखता रहा है, और बिलावल का यह आह्वान एक बार फिर इस मुद्दे को वैश्विक पटल पर लाने का प्रयास है।

भारत का कड़ा रुख और समझौते का निलंबन

इस साल अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ दशकों पुराने सिंधु समझौते को निलंबित करने का कड़ा फैसला लिया था। भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। इस निलंबन के बाद पाकिस्तान ने चेतावनी दी थी कि यदि भारत सिंधु नदी का पानी रोकता है, तो इसे “युद्ध का ऐलान” माना जाएगा। हाल ही में भारतीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस संधि को पुनर्जीवित करने की संभावना को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि “यह समझौता अब कभी बहाल नहीं होगा।” शाह के इस बयान ने पाकिस्तान में उबाल ला दिया है और इसी के परिणामस्वरूप बिलावल भुट्टो की यह तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। भारत का यह कड़ा रुख पाकिस्तान पर दबाव बनाने और उसे आतंकवाद के मुद्दे पर घेरने की उसकी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक समझौता

सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर 1960 में हुआ एक ऐतिहासिक समझौता है। विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुए इस समझौते ने दोनों देशों के बीच कई नदियों के पानी के उपयोग को विनियमित किया। इस छह दशक पुराने समझौते के तहत सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी पाकिस्तान को देना तय किया गया था, जबकि रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का पानी भारत को आवंटित किया गया। संधि में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर नियमित बातचीत करने और साइट के मुआयने का भी प्रावधान है, ताकि पानी के बंटवारे और उपयोग से संबंधित किसी भी विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सके। यह समझौता दोनों देशों के बीच कई युद्धों और संघर्षों के बावजूद कायम रहा है, और इसे अक्सर भारत-पाकिस्तान संबंधों में स्थिरता के एक दुर्लभ उदाहरण के रूप में देखा जाता है। हालांकि, हालिया घटनाक्रम इसकी स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

भविष्य की संभावनाएं: तनाव या समाधान?

सिंधु जल संधि पर वर्तमान गतिरोध भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और जटिल बना रहा है। बिलावल भुट्टो जैसे नेताओं के भड़काऊ बयान दोनों देशों के बीच विश्वास की खाई को गहरा कर सकते हैं और किसी भी शांतिपूर्ण समाधान की संभावना को कम कर सकते हैं। भारत अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को देखते हुए आतंकवाद पर पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपना रहा है, जबकि पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था और कृषि के लिए सिंधु जल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण इस मुद्दे को अपनी “अस्तित्व की लड़ाई” के रूप में देख रहा है। इस स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, हालांकि भारत हमेशा से इन मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करने का पक्षधर रहा है। यह देखना बाकी है कि दोनों देश इस संवेदनशील मुद्दे पर किस तरह आगे बढ़ते हैं – क्या वे तनाव कम करने और बातचीत के रास्ते तलाशने में सक्षम होंगे, या यह जल विवाद उन्हें एक और बड़े टकराव की ओर धकेलेगा।

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