May 31, 2025 | 11:08 AM. आगरा, उत्तर प्रदेश।
वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह द्वारा रक्षा सौदों की आपूर्ति में हो रही देरी पर उठाए गए गंभीर सवालों को आगरा के पूर्व सैन्य अधिकारियों ने पूरी तरह जायज़ और समयोचित बताया है। उनका स्पष्ट कहना है कि यह केवल एक वरिष्ठ अधिकारी की राय नहीं, बल्कि पूरे रक्षा तंत्र के लिए एक चेतावनी है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
पूर्व सैन्य अधिकारियों की राय: ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए जवाबदेही और मानसिकता में बदलाव जरूरी

कर्नल जी.एम. खान (सेना मेडल), कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व सैन्य अधिकारी संघ ने वायुसेना प्रमुख की टिप्पणी से पूर्णतः सहमति जताते हुए कहा, “रक्षा उपकरणों की देरी न केवल सेना के मनोबल को प्रभावित करती है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी गंभीर असर डालती है। रक्षा उत्पादन इकाइयों को अब जवाबदेह बनाना होगा। ‘आत्मनिर्भर भारत’ तभी साकार होगा जब नीयत और व्यवस्था दोनों मजबूत हों।”

कर्नल उमेश चंद्र दुबे ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा, “रक्षा कंपनियाँ लंबे समय से भारी निवेश के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाई हैं। वायुसेना प्रमुख का यह बेबाक बयान इस संस्था और पूरे सिस्टम के लिए एक ‘वेक-अप कॉल’ है, ताकि वे अपनी कार्यप्रणाली में सुधार ला सकें।”

कर्नल पंकज कुमार ने भारतीय निजी कंपनियों को बढ़ावा देने की वकालत करते हुए कहा, “अब समय आ गया है कि हम रक्षा क्षेत्र में मानसिकता बदलें और भारतीय निजी कंपनियों को आगे बढ़ने का अवसर दें। भारत फोर्ज, महिंद्रा और टाटा जैसे उद्योग रक्षा निर्माण में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। इन्हें सहयोग और प्राथमिकता दी जानी चाहिए, न कि विदेशी कंपनियों को।”

कर्नल एन.के. चतुर्वेदी ने चुनौतियों को स्वीकारते हुए कहा, “लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट परियोजना में अमेरिकी इंजन की देरी एक उदाहरण है कि हम किन चुनौतियों से जूझ रहे हैं। लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि देश अब आत्मनिर्भरता की राह पर है और हर बदलाव में समय व धैर्य की जरूरत होती है।”

कर्नल अपूर्व त्यागी ने समयबद्धता के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “हर रक्षा सौदे में एक तय समय सीमा होती है। उस समय के भीतर जरूरी सामान या उपकरण पहुंचाना ज़रूरी होता है। अगर इसमें ज़्यादा देर होती है, तो वह किसी भी तरह से ठीक नहीं माना जाता।”
इन सभी पूर्व अधिकारियों की राय इस ओर स्पष्ट संकेत करती है कि अब केवल बयानों से काम नहीं चलेगा, बल्कि ठोस और समयबद्ध कार्यवाही की आवश्यकता है। नीति निर्धारकों को रक्षा क्षेत्र की वास्तविक ज़रूरतों को प्राथमिकता देते हुए, ‘मेक इन इंडिया’ पहल को ज़मीन पर उतारना होगा और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तेजी से काम करना होगा।