डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा: लॉ कॉलेजों में मौखिक परीक्षाओं की शुचिता पर उठे सवाल- चपरासी बने परीक्षक!
डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से संबद्ध कुछ निजी लॉ कॉलेजों में विधि शिक्षा की गंभीरता को लेकर एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। विश्वविद्यालय द्वारा ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान आयोजित की जा रही विधि संकाय की प्रायोगिक परीक्षाओं (मौखिक परीक्षा/वायवा) में भारी अनियमितताओं का आरोप लग रहा है।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने पिछले वर्ष यह निर्णय लिया था कि गर्मी की छुट्टियों में भी परीक्षाएं संचालित की जाएंगी, और इस दौरान कॉलेज प्राचार्य को यह अधिकार होगा कि वे स्वयं आंतरिक परीक्षक नियुक्त करें। इस छूट का दुरुपयोग करते हुए कुछ निजी (सेल्फ फाइनेंस) महाविद्यालयों ने गंभीर शैक्षणिक नियमों की अवहेलना की। सूत्रों के अनुसार, कई कॉलेजों ने विधि विषय के किसी प्रशिक्षित एवं विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित शिक्षक की नियुक्ति करने के बजाय अपने संस्थान के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों, यहाँ तक कि चपरासियों, को मौखिक परीक्षाओं का परीक्षक बना दिया। कुछ मामलों में परीक्षकों ने विधि से संबंधित प्रश्न पूछने के बजाय छात्रों से केवल औपचारिक बातचीत कर उन्हें मनमाने अंक प्रदान कर दिए। इस प्रकार की प्रक्रिया से कई विद्यार्थियों को अनुचित लाभ मिला, जबकि वास्तविक रूप से परिश्रम करने वाले छात्र हाशिये पर चले गए।
विश्वविद्यालय से जुड़े अनेक शिक्षकों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और विश्वविद्यालय प्रशासन से यह मांग की है कि भविष्य में इस प्रकार की छूट पर तत्काल रोक लगे। उनका कहना है कि केवल विधि विषय के नियमित, योग्यता प्राप्त और विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित शिक्षकों को ही आंतरिक परीक्षक बनाया जाए, ताकि विधि शिक्षा की साख और गरिमा बनी रह सके। उनका कहना है कि यदि इस तरह की प्रवृत्तियों पर तत्काल अंकुश नहीं लगाया गया, तो इससे विश्वविद्यालय की छवि पर भी प्रश्नचिह्न लग सकते हैं।