Agra, उत्तर प्रदेश: सोमवार, 2 जून 2025, शाम 5:40 बजे।
देश में एक बार फिर कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले सामने आने लगे हैं, जिसने आम जनता में चिंता बढ़ा दी है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार, सोमवार तक देश में कोरोना संक्रमण के 3,961 सक्रिय मामले दर्ज किए गए हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के निदेशक डॉ. राजीव बहल ने हाल ही में पुष्टि की थी कि भारत में कोरोना वायरस के चार नए वैरिएंट पाए गए हैं, जिसके बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या 2022 तक लगाए गए कोविड के टीके इन नए वैरिएंट के खिलाफ भी कारगर होंगे, और क्या नए वैरिएंट के कारण कोरोना की नई लहर आने की आशंका है?
फिलहाल, सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग में भी कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इकोनॉमिक टाइम्स ने बताया कि सिंगापुर में अब तक जिन नमूनों के जीनोम की अनुक्रमण (इंडेक्सिंग) की गई है, उनमें से ज्यादातर मामले जेएन.1 (JN.1) वैरिएंट के पाए गए हैं। लेकिन यह जेएन.1 वैरिएंट कोई नया वायरस नहीं है। यह ओमिक्रॉन का एक सब-वैरिएंट है जिसे पिछले कुछ वर्षों में खोजा गया है।
डॉ. संजय राय, दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और कोवैक्सीन के सभी तीन चरणों में प्रमुख शोधकर्ता रहे हैं। Today Express ने उनसे कोविड-19 के जेएन.1 वैरिएंट के बारे में विस्तार से पूछा। जवाब में डॉ. संजय राय ने कहा, “जेएन.1 कोरोना के ओमिक्रॉन वायरस का एक सब-वैरिएंट है। इसकी खोज हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। यह कोई नया वायरस नहीं है। यह गंभीर हो सकता है या नहीं, इसके बारे में हमारे पास पूरी जानकारी है। जेएन.1 वैरिएंट से डरने की जरूरत नहीं है। अभी जो पता चला है, उसके मुताबिक यह सामान्य सर्दी-जुकाम जितना हल्का या उससे भी हल्का हो सकता है।”
इस मामले पर विशेषज्ञों की राय जानने के लिए हमने महाराष्ट्र सरकार की ओर से कोरोना महामारी के दौर में गठित टास्क फोर्स का हिस्सा रहे डॉ. अविनाश गावंडे (नागपुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिटेंडेंट) से बात की। डॉ. गावंडे कहते हैं, “यह वैरिएंट ओमिक्रॉन से हल्का है। हालांकि यह तेजी से फैलता है। अगर एक व्यक्ति संक्रमित होता है, तो वह इस वैरिएंट से तेजी से कई लोगों को संक्रमित कर सकता है। वैसे स्थिति इतनी गंभीर नहीं है। इसलिए लोगों को डरने की कोई जरूरत नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि छोटे बच्चों, बुजुर्गों और पहले से ही कई स्वास्थ्य परेशानियों से जूझ रहे लोगों को निश्चित रूप से अपना ध्यान रखना चाहिए। डॉ. गावंडे सलाह देते हैं कि जो लोग इस वैरिएंट से संक्रमित हैं, उन्हें दूसरे लोगों से दूरी बनाए रखनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनसे किसी और को संक्रमण न फैले।
कुछ साल पहले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को भारी मुश्किल में डाल दिया था, जिससे लाखों लोग मारे गए थे। उस समय भारत में व्यापक पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया गया था, जिसमें लोगों को सबसे ज्यादा कोवैक्सीन और कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई थीं, जबकि कुछ लोगों ने रूसी स्पुतनिक वैक्सीन भी ली थी।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या दो-तीन साल पहले ली गई वैक्सीन मौजूदा वैरिएंट के खिलाफ कारगर होगी? इस पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन महाराष्ट्र के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडवे ने कहा कि जिन लोगों ने वैक्सीन की दो डोज के साथ बूस्टर डोज ली है, उन्हें थोड़ा फायदा जरूर होगा। उन्होंने कहा, “ये टीके पहले कोविड वायरस के खिलाफ बनाए गए थे। वे टीके मूल वायरस के खिलाफ पूरी तरह से असरदार नहीं थे।” डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि वैक्सीन लगने के बाद आपको कोरोना का संक्रमण नहीं होगा, लेकिन संक्रमित होने पर लक्षण मामूली हो सकते हैं। हालांकि, जिन लोगों ने टीके की दोनों डोज और बूस्टर डोज ले ली है, उनमें लंबे समय तक इम्यूनिटी बनी रह सकती है, लेकिन जिन्होंने केवल एक या दो डोज ली है, उनकी इम्यूनिटी कम हो सकती है। डॉ. अविनाश भोंडवे ने जोर देकर कहा, “कोरोना वैक्सीन से निश्चित तौर पर फायदा होगा, लेकिन केवल उन लोगों को लाभ होगा जिन्हें दो डोज और एक बूस्टर डोज मिली है।”
वहीं, डॉ. अविनाश गावंडे का कहना है कि पहले की वैक्सीन मौजूदा वैरिएंट पर काम नहीं करेगी। उनके मुताबिक, “कोरोना के खिलाफ हर साल टीका लगवाना फायदेमंद होगा। इसके लिए हर साल नए टीके विकसित करने होंगे, क्योंकि नए वैरिएंट पर पुराने टीके काम नहीं करेंगे।” उन्होंने इन्फ्लूएंजा वायरस का उदाहरण देते हुए कहा, “जिस तरह एक साल पहले दिया गया इन्फ्लुएंजा का टीका अगले साल किसी काम का नहीं रहता और नया टीका विकसित करना पड़ता है, उसी तरह अगर कोरोना पर पूरी तरह से काबू पाना है तो नए टीके विकसित करने होंगे।” हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि “अगर कुछ लोगों में पुराने टीकों से इम्यूनिटी बनी हुई है तो इससे मौजूदा वैरिएंट से लड़ने में मदद मिलेगी।” अविनाश भोंडवे का कहना है कि रिसर्च महंगी होने की वजह से नया टीका बनाना संभव नहीं लगता। डॉक्टरों के अनुसार, इन्फ्लूएंजा वायरस लगातार म्यूटेट करता रहता है, इसलिए हर साल इसका नया टीका जारी किया जाता है। अविनाश भोंडवे ने दोहराया, “कोरोना के नए वैरिएंट आते रहेंगे। इसलिए हर बार नया टीका बनाना संभव नहीं है क्योंकि रिसर्च में बहुत खर्च होता है।” डॉक्टर कहते हैं कि यह सही है कि हर साल जब वायरस का कोई वैरिएंट सामने आता है तो उसके लिए वैक्सीन बनाई जानी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना का नया वैरिएंट तेजी से फैल रहा है, लेकिन कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या कोरोना की नई लहर आ सकती है? डॉ. अविनाश गावंडे ने कहा कि इस बार नई लहर की आशंका कम है। इसके पीछे वह तीन मुख्य कारण बताते हैं:
पहला, हमारे देश में बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाया जा चुका है, इसलिए कुछ लोगों में इस वैरिएंट से लड़ने के लिए कम से कम कुछ इम्यूनिटी तो है।
दूसरा, हालांकि यह वैरिएंट तेजी से फैल रहा है, लेकिन इसकी गंभीरता कम है। भले ही यह कई लोगों को संक्रमित करे, लेकिन यह जल्द ही ठीक हो जाएगा, इसलिए पहले जैसे हालात नहीं होंगे।
तीसरा, अगर कोई व्यक्ति इस वैरिएंट से संक्रमित भी हो, तो भी उसे अक्सर पता नहीं चलता क्योंकि रोग की गंभीरता कम होती है। हालांकि, इस वैरिएंट से संक्रमित होने के बाद व्यक्ति के शरीर में इस वैरिएंट से लड़ने के लिए इम्यूनिटी विकसित हो सकती है।
डॉ. अविनाश गावंडे का निष्कर्ष है, “नया वैरिएंट जेएन.1 ओमिक्रॉन का एक सब-वैरिएंट है। हालांकि इसके लक्षण हल्के हैं, यह गंभीर नहीं है, इसलिए अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या भी कम नजर आ रही है।” वह कहते हैं, “लेकिन इस वैरिएंट में मरीजों की संख्या बढ़ती भी है तो ऐसी स्थिति नहीं आएगी कि ज्यादा लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़े। क्योंकि इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं। मृत्यु दर भी कम है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना की नई लहर आएगी। लेकिन जिन लोगों को पहले से ही दूसरी बीमारियां हैं, उन्हें चिंता करने की जरूरत है और अधिक सावधानी बरतनी चाहिए।”