गुरुवार, जून 12, 2025, 4:35:04 AM IST. आगरा।
आगरा में बच्चों की खामोशी को समझने और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यशाला आयोजित की गई। विमल विहार, सिकंदरा-बोदला रोड स्थित फीलिंग माइंड्स संस्था के कार्यालय में प्रीलुड पब्लिक स्कूल द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में अंतरराष्ट्रीय बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. चीनू अग्रवाल ने बच्चों के मन को समझने के कई अहम मंत्र दिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की चुप्पी भी एक संदेश होती है और उनके व्यवहार में आए बदलाव आंतरिक संघर्ष का संकेत हो सकते हैं। “बाल मनोविकारों का कैसे करें निदान” विषय पर आधारित यह कार्यशाला दो सत्रों में संपन्न हुई, जिसमें आगरा पब्लिक स्कूल एसोसिएशन (अप्सा) के 38 स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भाग लिया।
कार्यशाला का उद्देश्य: बाल मानसिक तनाव के प्रति जागरूकता
कार्यशाला के पहले सत्र का शुभारंभ अप्सा के अध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता विभव ने किया, जबकि दूसरे सत्र का उद्घाटन शेखर भरत सिंह ने दीप प्रज्वलन के साथ किया। डॉ. सुशील गुप्ता विभव ने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य बच्चों में बढ़ते मानसिक तनाव, व्यवहारिक असंतुलन और मनोविकारों के प्रति समाज को जागरूक करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों के शारीरिक विकास की तरह ही उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी बराबर महत्व देना आज के समय की एक बड़ी जरूरत है। आधुनिक जीवनशैली और लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने बच्चों को मानसिक दबाव में ला खड़ा किया है, जिसे समझना और समय पर उसका निदान करना बेहद आवश्यक है।
डॉ. चीनू अग्रवाल का मंत्र: बच्चों के व्यवहार को समझें
अल्बर्ट एलिस इंस्टीट्यूट, न्यूयॉर्क द्वारा प्रशिक्षित और देश की जानी-मानी बाल मनोवैज्ञानिक तथा फीलिंग माइंड्स संस्था की संस्थापक डॉ. चीनू अग्रवाल ने कार्यशाला को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि बच्चे अक्सर अपनी तकलीफ को शब्दों में नहीं बता पाते, लेकिन उनका व्यवहार उनकी अंदरूनी स्थिति का आईना होता है। ऐसे में, माता-पिता और शिक्षकों को संवेदनशील संवाद और भावनात्मक समझदारी के माध्यम से बच्चों की मानसिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझना चाहिए। डॉ. अग्रवाल ने चेताया कि बच्चों में चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, नींद की समस्या, डर, समाज से कटाव और पढ़ाई में रुचि की कमी जैसे लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। ये सभी किसी गहरे मानसिक असंतुलन के संकेत हो सकते हैं, और यदि समय रहते इनका संज्ञान ले लिया जाए, तो गंभीर समस्याओं से बचा जा सकता है।
उन्होंने यह भी बताया कि “फीलिंग माइंड्स” का लक्ष्य बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना है। डॉ. अग्रवाल ने घोषणा की कि संस्था द्वारा भविष्य में भी नियमित रूप से इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित की जाती रहेंगी, ताकि समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति एक सकारात्मक और सहायक वातावरण का निर्माण हो सके।
शिक्षक-शिक्षिकाओं ने लिया प्रशिक्षण, नि:शुल्क परामर्श सत्र भी आयोजित
कार्यशाला के पहले सत्र में प्रीलुड पब्लिक स्कूल, सन फ्लावर पब्लिक स्कूल, जीआरएन सरस्वती बालिका विद्यालय, सेंट थॉमस स्कूल, डॉ. एमपीएस वर्ल्ड स्कूल, सेंट फ्रांसीस कॉन्वेंट स्कूल, सेंट्रल आगरा पब्लिक स्कूल, माही इंटरनेशनल स्कूल, सेंट फ्रांसीस कॉन्वेंट स्कूल सिकंदरा, डॉ. वीरेंद्र स्वरूप एजुकेशन सेंटर, कानपुर जैसे स्कूलों के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भाग लिया। दूसरे सत्र में होली लाइट पब्लिक स्कूल, नेमीचंद एजुकेशन एकेडमी, एसएस कॉन्वेंट स्कूल, एसआरडी सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल, मांगलिक शिक्षा केंद्र, एस एस पब्लिक स्कूल, डॉ. एमपीएस वर्ल्ड स्कूल, ब्रिज पब्लिक स्कूल, क्रिम्सन पब्लिक स्कूल, कर्नल ब्राइटलैंड पब्लिक स्कूल, बीबीवीएम पब्लिक स्कूल, सनशाइन पब्लिक स्कूल, शारदा वर्ल्ड स्कूल, शांतिनिकेतन पब्लिक स्कूल, माही इंटरनेशनल स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने बच्चों के मन को समझने का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। कार्यशाला में बाल मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर चर्चा के साथ-साथ एक नि:शुल्क परामर्श सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें कई अभिभावकों और शिक्षकों ने भाग लेकर विशेषज्ञों से महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त किया। कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षकों, अभिभावकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों ने कार्यशाला को बेहद उपयोगी और ज्ञानवर्धक बताया। उन्होंने विशेषज्ञों से कई प्रश्न भी पूछे। अंत में डॉ. रविंद्र अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया, और शैलेश अग्रवाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिए गए और कार्यशाला का समापन जलपान के साथ हुआ।
आगरा में जल्द बनेगी मानसिक स्वास्थ्य पर नई समिति
डॉ. चीनू अग्रवाल ने बताया कि आजकल के बच्चों में मानसिक दबाव के कई प्रमुख कारण हैं, जिनमें अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण, मोबाइल व इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता, अभिभावकों की उच्च अपेक्षाएं, भावनात्मक संवाद की कमी, परिवार में झगड़े या अस्थिरता, और नींद व खानपान में असंतुलन शामिल हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि मानसिक विकार केवल एक विकृति नहीं हैं, बल्कि यह मनोवैज्ञानिक असंतुलन की एक अवस्था है जिसे यदि समय रहते पहचान लिया जाए, तो पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वर्तमान समाज में लगातार बढ़ रही मानसिक समस्याओं से निपटने के लिए जल्द ही आगरा में इंटरनेशनल सोसायटी फॉर मेंटल हेल्थ एडवोकेसी एंड एक्शन नामक एक नई संस्था का गठन किया जाएगा, जो इस दिशा में सक्रिय रूप से काम करेगी।
बाल मनोविकार को ऐसे पहचानें: डॉ. चीनू अग्रवाल के महत्वपूर्ण संकेत
डॉ. चीनू अग्रवाल के अनुसार, अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों में निम्न संकेतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि ये बाल मनोविकार के लक्षण हो सकते हैं:
- लगातार उदासी या खुद को हीन महसूस करने की भावना।
- अचानक गुस्सा या चिड़चिड़ापन बहुत बढ़ जाना।
- अचानक से सामाजिक मेल-जोल से दूरी बनाना, अकेले रहना पसंद करना।
- हर छोटी बात पर बहुत ज्यादा गुस्सा करना या रोने लगना।
- अकेले में बातें करना, चीजें तोड़ना या खुद को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करना।
- भोजन या नींद में असामान्य और अचानक बदलाव।
- बार-बार बीमार पड़ना, जबकि कोई शारीरिक कारण न हो।
- पढ़ाई से पूरी तरह मन हट जाना, ध्यान न लगा पाना।
डॉ. चीनू ने बताया कि यदि ये लक्षण लगातार दो सप्ताह से अधिक समय तक बने रहें, तो यह किसी गंभीर मानसिक स्थिति (जैसे एंग्जायटी या डिप्रेशन) का संकेत हो सकता है और ऐसे में तत्काल किसी विशेषज्ञ से परामर्श लेना बेहद जरूरी है।
इस तरह समझें बाल मन को: डॉ. चीनू अग्रवाल के व्यावहारिक उपाय
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर ढंग से समझने और उनका सहयोग करने के लिए डॉ. चीनू अग्रवाल ने कुछ व्यावहारिक उपाय सुझाए:
- हर दिन कम से कम 10 मिनट बच्चों से बिना डांटे या टोके बात करें।
- बच्चों की बातों को बीच में न टोकें; उन्हें अपनी पूरी बात कहने दें।
- “तुम्हें क्या चाहिए?” पूछने से पहले पूछें, “तुम कैसा महसूस कर रहे हो?” उनके भावनात्मक अनुभवों को महत्व दें।
- सजा देने की बजाय, सहमति और विकल्पों के माध्यम से उन्हें सही दिशा दिखाएं।
- बच्चों को भावनात्मक शब्दावली सिखाएं, जैसे “मैं परेशान हूँ,” “मुझे डर लग रहा है,” आदि, ताकि वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें।
- बच्चों के लिए एक रोजाना रूटीन तय करें जिसमें खेलने, कला से जुड़ने और सुकून का समय शामिल हो।
- स्क्रीन टाइम (मोबाइल/टीवी देखने का समय) सीमित करें और उन्हें “रियल टाइम अटेंशन” दें, यानी उनके साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताएं।
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