May 31, 2025 | 02:09 AM. लखनऊ, उत्तर प्रदेश। .
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने चुपचाप लेकिन रणनीतिक रूप से अपने संगठन को 2007 जैसी मजबूती देने का अभियान शुरू कर दिया है। पार्टी सुप्रीमो मायावती इस मुहिम की खुद निगरानी कर रही हैं। वे संगठन के पुनर्गठन से लेकर ज़मीनी कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय करने तक की पूरी कमान अपने हाथों में ले चुकी हैं। बसपा भाईचारा कमेटियों को फिर से मजबूत करने के साथ ही, संगठन के हर पहलू को दुरुस्त करने में जुटी है।
बसपा ने पूरे प्रदेश में बूथ कमेटियों, सेक्टर कमेटियों और विधानसभा स्तरीय कमेटियों के पुनर्गठन का काम तेज कर दिया है। इन इकाइयों को न केवल फिर से बनाया जा रहा है, बल्कि उनमें नए जोश के साथ कार्यकर्ताओं की सक्रियता भी सुनिश्चित की जा रही है। पार्टी कोआर्डिनेटर्स संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ अपने-अपने सामाजिक आधार वाले वर्गों को दोबारा पार्टी से जोड़ने के अभियान में भी लगे हैं, ताकि पार्टी का जनाधार फिर से मजबूत हो सके।

भाईचारा कमेटियों की वापसी और निष्ठावान नेताओं का पुनर्गठन
2007 में बसपा को जो सत्ता मिली थी, उसमें पार्टी की भाईचारा कमेटियों ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। इन कमेटियों ने विभिन्न समुदायों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। अब एक बार फिर इन कमेटियों को नए सिरे से सक्रिय किया जा रहा है। ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम, पिछड़ा वर्ग समेत अन्य समुदायों को साथ लाने और सामाजिक समीकरणों को मजबूत करने के लिए भाईचारा कमेटियों को केंद्र में रखा गया है। यह रणनीति अलग-अलग समुदायों के बीच सामंजस्य बनाकर पार्टी की पकड़ मजबूत करने पर केंद्रित है।
पार्टी प्रमुख मायावती ने यह साफ संकेत दिया है कि उन नेताओं और कार्यकर्ताओं की वापसी हो सकती है, जिन्हें पहले किन्हीं कारणों से बाहर किया गया था। बशर्ते उन्होंने बसपा के प्रति अपनी निष्ठा कभी न छोड़ी हो और वे किसी अन्य राजनीतिक दल में न गए हों। माना जा रहा है कि ऐसे निष्ठावान नेताओं की वापसी से पार्टी का पुराना सांगठनिक ढांचा फिर से जीवंत हो सकता है और पार्टी को नई ऊर्जा मिलेगी।
2027 की मौन रणनीति: मायावती का सीधा हस्तक्षेप
बसपा की यह पूरी गतिविधि फिलहाल गोपनीय और चरणबद्ध तरीके से चल रही है। इसका मुख्य लक्ष्य 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में वही सशक्त सांगठनिक उपस्थिति हासिल करना है, जो 2007 में पार्टी को सत्ता दिलाने में मददगार साबित हुई थी। मायावती खुद इन सभी फैसलों को अंतिम रूप दे रही हैं और उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सीधे ज़मीनी स्तर के कोआर्डिनेटर्स के कंधों पर है। यह ‘मौन संचालन’ साफ दिखाता है कि पार्टी आगामी चुनावों को लेकर कितनी गंभीर और रणनीतिक है।