वृंदावन, उत्तर प्रदेश: पवित्र नगरी वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित कॉरिडोर निर्माण और मंदिर के सरकारी अधिग्रहण को लेकर गहरा विवाद खड़ा हो गया है। मंदिर के सेवायतों ने सरकार के इन प्रयासों का कड़ा विरोध करते हुए एक अत्यंत गंभीर चेतावनी जारी की है: यदि सरकार अपने इस कदम से पीछे नहीं हटती है, तो वे सामूहिक रूप से ‘इच्छा मृत्यु’ की अनुमति मांगेंगे। यह घोषणा सदियों पुरानी आस्था, परंपरा और आधुनिक विकास के बीच बढ़ते टकराव को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
“ठाकुर जी को हमसे छीनने का अधिकार नहीं”: सेवायतों का भावनात्मक तर्क
सेवायत हिमांशु गोस्वामी ने सरकार के हस्तक्षेप को अपने धार्मिक और पारिवारिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया है। उन्होंने एक भावुक बयान में कहा, “अगर सरकार हमारे ठाकुर जी को हमसे छीनना चाहती है, तो हमें जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं।” यह कथन मंदिर और उसके आराध्य देव श्री बांके बिहारी के प्रति उनके गहन भावनात्मक और आध्यात्मिक जुड़ाव को रेखांकित करता है, जो उनके लिए केवल एक देवता नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य के समान हैं।
विरोध कर रहे गोस्वामी समाज का यह भी तर्क है कि श्री बांके बिहारी मंदिर कोई सामान्य सार्वजनिक संपत्ति नहीं है। उनका दावा है कि यह मंदिर स्वामी हरिदास जी के वंशजों की पीढ़ियों से चली आ रही एक निजी संपत्ति है। उनके अनुसार, मंदिर का प्रबंधन, सेवा और रीति-रिवाजों का पालन उनके पुश्तैनी अधिकार में आता है, जिसे किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से चुनौती नहीं दी जा सकती। यह तर्क मंदिर के मालिकाना हक और उसके संचालन की पारंपरिक प्रणाली पर आधारित है।
एक अन्य सेवायत आशीष गोस्वामी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “हमने जन्म से ठाकुर जी की सेवा की है। तन, मन और धन से समर्पण किया है।” उन्होंने स्पष्ट शब्दों में आरोप लगाया कि सरकार “बाहरी लोगों के इशारे पर” बिहारी जी को उनसे अलग करने का प्रयास कर रही है, जिसे वे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। यह आरोप उन अटकलों को हवा देता है कि इस परियोजना के पीछे कुछ निहित स्वार्थ या बाहरी दबाव हो सकता है।
विकास बनाम परंपरा: कॉरिडोर परियोजना का दोहरा पहलू
सरकार द्वारा प्रस्तावित बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर परियोजना को श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर आवश्यक बताया जा रहा है। परियोजना का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाना, भीड़भाड़ को कम करना और मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण करना है। अधिकारियों का तर्क है कि यह परियोजना मंदिर क्षेत्र में आने वाले लाखों भक्तों के लिए बेहतर व्यवस्था और सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।
हालांकि, सेवायतों का इस ‘विकास’ के दृष्टिकोण से गहरा मतभेद है। उनका मानना है कि यह परियोजना मंदिर की सदियों पुरानी परंपराओं, उसकी मूल और ऐतिहासिक संरचना तथा उनके सेवायती अधिकारों का सीधा हनन है। वे चिंतित हैं कि कॉरिडोर के निर्माण से मंदिर का पारंपरिक स्वरूप बदल जाएगा और उनके पुश्तैनी अधिकार छीन लिए जाएंगे। सेवायतों का मानना है कि मंदिर की पवित्रता और ऐतिहासिकता को बनाए रखना आधुनिक सुविधाओं से अधिक महत्वपूर्ण है। यह विवाद धार्मिक आस्था, पारंपरिक अधिकारों और सरकार की विकास योजनाओं के बीच एक जटिल टकराव को दर्शाता है, जिसका समाधान निकालना एक बड़ी चुनौती है।