भारत में बलूचिस्तान की सेना एवं निर्वासित सरकार?
No More पाकिस्तान: भारत के लिए एक रणनीतिक सोच

कर्नल जी.एम. ख़ान, सेना मेडल (वीरता)
जब कोई राष्ट्र अपने ही नागरिकों को दबाने लगे, उनके अस्तित्व और अधिकारों को कुचलने लगे, तो वहां अलगाव की चिंगारी इतिहास की अनिवार्यता बन जाती है। पाकिस्तान का बलूचिस्तान आज ऐसी ही स्थिति से गुजर रहा है, जहां जनता के पास अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए विद्रोह के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा है।
बलूचिस्तान न सिर्फ पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधन-संपन्न प्रांत है, बल्कि यह दशकों से अत्याचार, दमन, और सैन्य अत्याचारों का शिकार रहा है। हजारों बलूच युवकों के जबरन गायब होने, पत्रकारों की हत्याओं, महिलाओं पर अत्याचार और सांस्कृतिक पहचान के दमन ने वहां के जनमानस को विद्रोह की ओर धकेल दिया है।
भारत की भूमिका: क्या यह समय निर्णायक बन सकता है?
भारत ने अतीत में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्ज़े के बाद एक साहसिक कदम उठाया था। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) का गठन करके तिब्बती शरणार्थियों को संगठित किया गया और धर्मशाला में तिब्बती निर्वासित सरकार को मान्यता और स्थान दिया गया। इस रणनीति ने भारत को न केवल कूटनीतिक मजबूती दी, बल्कि चीन को एक स्पष्ट संदेश भी दिया।
बलूचिस्तान के संदर्भ में आज भारत के सामने वैसी ही ऐतिहासिक स्थिति खड़ी है।
एक बलूच विशेष बल और निर्वासित सरकार की ज़रूरत
1. बलूच विशेष फोर्स (Baloch Special Force):
भारत में रह रहे बलूच शरणार्थियों, विदेशों में निर्वासन झेल रहे बलूच कार्यकर्ताओं, और जो भारत में शरण लेना चाहें – उनके लिए एक संगठित सैन्य बल का गठन किया जा सकता है। यह बल न केवल बलूच स्वतंत्रता संग्राम को ऊर्जा देगा, बल्कि पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश देगा कि भारत अब केवल दर्शक नहीं रहेगा।
2. बलूच निर्वासित सरकार (Government-in-Exile):
भारत, धर्मशाला मॉडल की तर्ज पर, बलूच नेताओं को एक वैध राजनीतिक मंच प्रदान कर सकता है। यह सरकार न केवल बलूच जनता की आवाज़ बनेगी, बल्कि पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकार हनन की पोल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खोलने में सक्षम होगी।
बलूच समर्थन से भारत को क्या लाभ?
• रणनीतिक दबाव: पाकिस्तान को यह एहसास होगा कि आतंकवाद और हिंसा का जवाब अब कूटनीति से ही नहीं, रणनीति से भी मिलेगा।
• अंतरराष्ट्रीय छवि: भारत एक जिम्मेदार लोकतंत्र के रूप में उभरेगा, जो मानवाधिकारों और न्याय के पक्ष में खड़ा है।
• CPEC पर प्रभाव: बलूच समर्थन से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को झटका लगेगा, जो बलूच क्षेत्र से होकर गुजरता है और भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है।
क्या यह हस्तक्षेप कहलाएगा?
पाकिस्तान, चीन जैसे देश भारत पर “आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप” का आरोप लगा सकते हैं। लेकिन यदि भारत इसे मानवाधिकार और नैतिक समर्थन के रूप में पेश करे, और यह स्पष्ट करे कि उसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करना है, न कि सैन्य आक्रामकता – तो यह कदम वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त कर सकता है।
निष्कर्ष
बलूचिस्तान की पुकार अब अनसुनी नहीं की जानी चाहिए। यह एक ऐसा अवसर है, जहाँ भारत सिर्फ अपनी सीमाओं की नहीं, बल्कि अपने मूल्यों की भी रक्षा कर सकता है। एक बलूच विशेष बल और निर्वासित सरकार की स्थापना न केवल भारत को रणनीतिक बढ़त देगी, बल्कि यह oppressed लोगों के लिए आशा का प्रतीक भी बनेगी।
अब समय है कि भारत न केवल प्रतिक्रिया दे, बल्कि रणनीति के साथ आगे बढ़े; क्योंकि मौन भी कभी-कभी एक अपराध बन जाता है।