गुरुवार, 19 जून 2025, 9:10:11 AM. आगरा, उत्तर प्रदेश।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज 55 वर्ष के हो गए हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख चेहरे राहुल गांधी का राजनीतिक सफर 2004 में उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से शुरू हुआ था। नेहरू-गांधी परिवार के वंशज के रूप में 19 जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी का यह सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, जिसमें उन्होंने पार्टी को मजबूत करने और जनता के मुद्दों को उठाने का निरंतर प्रयास किया है। उनकी हालिया ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ ने देश में एकता और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजनीतिक करियर की शुरुआत और प्रमुख भूमिकाएँ
राहुल गांधी के राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 2004 में हुई, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और उसमें जीत हासिल की। यह सीट उनके पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी के लिए एक पारंपरिक पारिवारिक गढ़ रही है। अपनी प्रारंभिक राजनीतिक पारी में, राहुल गांधी ने विशेष रूप से युवाओं और ग्रामीण विकास के मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिससे उन्होंने जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की।
वर्ष 2007 में उन्हें कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया गया, जो पार्टी संगठन में उनकी बढ़ती भूमिका का संकेत था। इसके बाद, 2013 में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया, और अंततः 2017 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला, जो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का एक बड़ा पड़ाव था। उनके नेतृत्व में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ (2022-23) ने देश भर में लगभग 4,000 किलोमीटर की दूरी तय की, जिसका मुख्य उद्देश्य नफरत के खिलाफ प्रेम का संदेश फैलाना और कांग्रेस को संगठनात्मक रूप से मजबूत करना था। इस यात्रा का असर 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर भी साफ दिखाई दिया। इसके बाद, उन्होंने ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ (2024) के माध्यम से भी सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।
युवा कांग्रेस पर फोकस और जन-केंद्रित पहलें
राहुल गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक उनकी जन-केंद्रित पहलें और युवाओं पर उनका फोकस रहा है। उन्होंने युवा कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) में सुधार लाने पर विशेष ध्यान दिया, जिसके परिणामस्वरूप इन संगठनों की सदस्य संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उन्होंने कृषि कानूनों की वापसी (2021) और जीएसटी दरों में कमी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी दृढ़ता दिखाई, जिसने विपक्ष को मजबूत करने में एक भूमिका निभाई। इसके अलावा, उन्होंने बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं और सामाजिक न्याय जैसे ज्वलंत मुद्दों को राष्ट्रीय बहस में लाकर आम जनता की आवाज़ बनने का प्रयास किया।
चुनौतियाँ और सियासी सफर में उतार-चढ़ाव
हालांकि, राहुल गांधी का राजनीतिक सफर चुनौतियों से अछूता नहीं रहा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की लगातार हार ने उनकी नेतृत्व क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े किए। विशेष रूप से 2019 में अमेठी की अपनी पारंपरिक सीट से स्मृति ईरानी के हाथों उनकी हार को उनकी व्यक्तिगत राजनीतिक पराजय के रूप में देखा गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी मात्र 52 सीटों पर सिमट गई, जिसके बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
उनकी “पप्पू” जैसी छवि, जो अक्सर सोशल मीडिया और विरोधी दलों द्वारा गढ़ी गई, और वंशवाद के आरोपों ने उनकी लोकप्रियता को प्रभावित किया। मीडिया और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से उन्हें लगातार निशाना बनाया गया, खासकर उनके ‘चौकीदार चोर है’ जैसे बयान पर खूब विवाद हुआ।
वर्ष 2023 में मानहानि के एक मामले में उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई और इसके परिणामस्वरूप उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई, जो उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी चुनौती थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस सजा पर रोक लगाकर उन्हें बड़ी राहत दी और उनकी सदस्यता बहाल हुई। इन सबके बावजूद, उनकी मजबूत शैक्षिक पृष्ठभूमि (हावर्ड और कैम्ब्रिज से पढ़ाई) और जनता के साथ सीधे जुड़ने की कोशिशों ने उन्हें फिर से खड़ा होने का मौका दिया है।
कांग्रेस की खोई हुई ज़मीन वापस दिलाने की चुनौती
वर्तमान में, 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी एक बार फिर सक्रिय भूमिका में हैं और कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। वे विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ ब्लॉक का एक प्रमुख चेहरा बने हुए हैं। आलोचक उन्हें अक्सर निर्णय न लेने वाला, अनिश्चित और कमजोर नेता मानते हैं, वहीं उनके समर्थक उन्हें लोकतंत्र की रक्षा और आम जनता की आवाज़ की उम्मीद के रूप में देखते हैं। राहुल गांधी ने इन आलोचनाओं के बीच अपनी छवि को सुधारने और जनता से जुड़ने के लिए लगातार प्रयास किया है।
राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को उसकी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन वापस दिलाना है। भविष्य में उनकी रणनीति और विपक्ष के एक मजबूत नेता के रूप में उनकी भूमिका ही देश की राजनीति की दिशा तय करेगी कि वे भारतीय राजनीति में कितनी मजबूती से उभरते हैं और कांग्रेस को एक बार फिर से सशक्त बनाते हैं।