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अमेरिकी प्रोपेगैंडा से सावधान!

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आजकल अमेरिकी कंपनियों और उनके स्थानीय दलालों ने भारत में ड्राई फ्रूट्स की बिक्री बढ़ाने के लिए एक ज़बरदस्त प्रचार अभियान छेड़ रखा है। वे यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि बादाम-काजू खाओ, तो बच्चे आइंस्टीन बन जाएंगे! यह महज़ एक मार्केटिंग झांसा है। सच तो यह है कि हमारे देश की पारंपरिक संतुलित आहार प्रणाली – दाल-रोटी, चावल-सब्ज़ी, दूध-घी – हमेशा से पोषण का पूरा खज़ाना रही है।
क्या सचमुच कोई यह मान ले कि गांधीजी अखरोट खा-खाकर महात्मा बन गए? या कि ड्राई फ्रूट्स के दम पर ही भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता पाई? अमेरिका अपने बासी और अधिक महंगे ड्राई फ्रूट्स भारत में बेचकर मुनाफ़ा कमाना चाहता है। हमें इस झांसे में नहीं आना चाहिए। संतुलित भोजन और अच्छी शिक्षा – यही असली मंत्र है स्वस्थ और बुद्धिमान पीढ़ी के लिए। ड्राई फ्रूट्स फ़ायदेमंद हो सकते हैं, पर यह कोई जादू की गोली नहीं हैं!


“ड्राई फ्रूट्स की सच्चाई उजागर: क्या यह सेहत का खजाना है या महज मार्केटिंग का जाल? – डॉ. राजेश चौहान का खुलासा!”



परिचय

डॉ. राजेश चौहान
(लेफ्टिनेंट कर्नल, सेवानिवृत्त)

  • MBBS (AFMC, पुणे)
  • मास्टर इन मेडिसिन (फैमिली मेडिसिन, CMC वेल्लोर)
  • पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जेरियाट्रिक मेडिसिन (MAMC, दिल्ली)
  • एसोसिएट फेलो इन इंडस्ट्रियल हेल्थ (RLI, FASLI, भारत सरकार)
  • डिप्लोमा इन फैमिली मेडिसिन (PGIM कोलंबो, IMA के माध्यम से)
  • पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन डिजास्टर मैनेजमेंट
  • फेलो ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ जेरियाट्रिशन्स ऑफ इंडिया
  • फेलो ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ मलेरिया एंड अदर कम्युनिकेबल डिजीज (FISCD)
  • फेलो ऑफ कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिशनर्स ऑफ इंडिया (FCGP)
  • एडवांस डिप्लोमा इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन (ADHA)
  • डिप्लोमा इन न्यूट्रीशन
  • LLB (बैचलर ऑफ लॉ)

The interview

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प्रश्नकर्ता: डॉ. राजेश चौहान जी, आपने ड्राई फ्रूट्स के बारे में हाल ही में कुछ बेहद चौंकाने वाली बातें सोशल मीडिया के जरिए उजागर कीं थीं। क्या आप हमें बता सकते हैं कि ड्राई फ्रूट्स वास्तव में बल, बुद्धि और सेहत के लिए अत्यंत आवश्यक हैं या नहीं?

डॉ. राजेश चौहान: देखिए, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। अगर हम इतिहास में झांकें, तो वेद-पुराण लिखने वाले ऋषि-मुनि, शाक्य मुनि, जैन महावीर जैसे महान लोग बिना ड्राई फ्रूट्स के ही स्वस्थ, बुद्धिमान और दीर्घायु थे। क्या उन्हें बादाम, काजू, पिस्ता या अखरोट की आवश्यकता थी? नहीं। उस समय मीडिया नहीं था, नारद मुनि अकेले यह प्रचार नहीं कर सकते थे। आज के युग में मीडिया और शोध के बावजूद, हमें यह सोचना होगा कि क्या ये ड्राई फ्रूट्स सचमुच इतने जरूरी हैं, जितना प्रचारित किया जाता है।

प्रश्नकर्ता: आपने अपने लेख में ड्राई फ्रूट्स के आयात, विशेष रूप से अमेरिका और खाड़ी देशों से, का जिक्र किया है। क्या आप मानते हैं कि यह एक व्यावसायिक रणनीति है?

डॉ. राजेश चौहान: बिल्कुल। अमेरिका, ईरान और खाड़ी देशों में ड्राई फ्रूट्स की बड़ी पैदावार होती है, और इसका बड़ा हिस्सा भारत जैसे देशों में निर्यात होता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या अमेरिका में ये ड्राई फ्रूट्स उतने ही उत्साह से खाए जाते हैं? अगर ये इतने फायदेमंद होते, तो क्या वहां के लोग इन्हें अपने लिए नहीं रखते? मुझे लगता है कि यह एक बिजनेस मॉडल है, जिसमें मार्केटिंग और विज्ञापन के जरिए ड्राई फ्रूट्स को अति आवश्यक बता दिया जाता है।

प्रश्नकर्ता: आपने अमीर और गरीब के बीच तुलना की है। क्या ड्राई फ्रूट्स खाने से मस्तिष्क और शरीर सुपर बन जाते हैं?

डॉ. राजेश चौहान: अगर ऐसा होता, तो हर अमीर व्यक्ति का मस्तिष्क और शरीर सुपर होता, और गरीबों में कभी बुद्धिमान लोग न होते। लेकिन आज भी गरीब परिवारों में ज्वार, बाजरा, सत्तू जैसे साधारण आहार पर स्वस्थ और बुद्धिमान बच्चे जन्म ले रहे हैं। यह संयोग नहीं है। अगर ड्राई फ्रूट्स इतने जरूरी होते, तो अमीर लोग सौ साल से पहले नहीं मरते, और उन्हें कोई बीमारी नहीं होती। लेकिन ऐसा नहीं है।

प्रश्नकर्ता: आपने इजराइल और यहूदियों का उदाहरण दिया। क्या ड्राई फ्रूट्स का प्रभाव उनके डीएनए से ज्यादा है?

डॉ. राजेश चौहान: इजराइल के यहूदियों की तुलना अक्सर की जाती है, लेकिन उनके आसपास के देशों जैसे फिलिस्तीन, लेबनान, सीरिया आदि से क्यों नहीं? यहूदियों की बुद्धि और सेहत उनके डीएनए और पर्यावरण से जुड़ी है, न कि ड्राई फ्रूट्स से। भारत में भी तमिलनाडु और केरल के कुछ ब्राह्मण समुदायों में श्रेष्ठ बुद्धि और स्वास्थ्य देखा जाता है, जो शायद डीएनए और जीवनशैली से संबंधित है, न कि ड्राई फ्रूट्स से।

प्रश्नकर्ता: क्या ड्राई फ्रूट्स का अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है?

डॉ. राजेश चौहान: हां, बिल्कुल। आज हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कैंसर, फैटी लिवर, PCOS, बांझपन जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, खासकर युवाओं में। क्या यह संयोग है कि ये समस्याएं उन लोगों में ज्यादा हैं, जो आधुनिक आहार और ड्राई फ्रूट्स का अधिक सेवन करते हैं? गरीब महिलाओं में बांझपन कम देखा जाता है। हमें यह शोध करना चाहिए कि ड्राई फ्रूट्स का अधिक सेवन शुक्राणुओं या स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालता है। पहले ये बीमारियां इतनी नहीं थीं, तो सोचिए कि क्या बदला?

प्रश्नकर्ता: आपने अपने 42 साल के अनुभव का जिक्र किया। क्या आप अपने मरीजों को ड्राई फ्रूट्स की सलाह देते हैं?

डॉ. राजेश चौहान: मैंने हमेशा यह कोशिश की है कि अपने मरीजों को वही सलाह दूं, जो अमेरिका और यूरोप में प्रचलित हो। लेकिन वहां ड्राई फ्रूट्स का वैसा प्रचलन नहीं है, जैसा भारत में प्रचारित किया जाता है। मेरे लिए बैलेंस्ड डाइट, ताजी हवा, धूप, शुद्ध पानी और तनावमुक्त जीवन ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वेद व्यास और तुलसीदास जैसे महान लोग बिना ड्राई फ्रूट्स के ही बुद्धिमान और स्वस्थ थे।

प्रश्नकर्ता: आपका सुझाव क्या है कि भारत को ड्राई फ्रूट्स के आयात पर क्या करना चाहिए?

डॉ. राजेश चौहान: मेरा मानना है कि हमें ड्राई फ्रूट्स के आयात पर निर्भरता कम करनी चाहिए। देश में ही इन्हें पैदा करें और किफायत से इस्तेमाल करें। इससे विदेशी मुद्रा बचेगी और आर्थिक लाभ होगा। रिसर्च और मीडिया को भी इस पर ध्यान देना चाहिए कि क्या ये वाकई इतने जरूरी हैं। प्रत्येक भारतीय को इस बारे में सोचना चाहिए और समझदारी से निर्णय लेना चाहिए।

प्रश्नकर्ता: अंत में, आप अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

डॉ. राजेश चौहान: सादा जीवन, संतुलित आहार, और तनावमुक्त जीवन ही असली सेहत और बुद्धि का आधार है। ड्राई फ्रूट्स को जरूरत से ज्यादा महत्व देने की बजाय, हमें अपनी परंपराओं और स्थानीय संसाधनों पर भरोसा करना चाहिए।
जय हिन्द!

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