आगरा, उत्तर प्रदेश: बुधवार, 4 जून 2025, शाम 7:30 बजे।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ताजनगरी आगरा में पर्यावरणीय चेतना की एक महत्वपूर्ण लहर उठी है। आज यमुना आरती स्थल की पवित्र और शांत पृष्ठभूमि में, रिवर कनेक्ट कैंपेन और इंडियन बायो डायवर्सिटी कंजर्वेशन सोसायटी द्वारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का केंद्रीय बिंदु एक गंभीर और तात्कालिक मांग थी: आगरा में छोटी प्लास्टिक बॉटल्स और पाउच सहित सभी प्रकार के एकल-उपयोग प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। यह मांग सिर्फ पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि आगरा की ऐतिहासिक विरासत, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शहरी बुनियादी ढांचे के भविष्य से भी जुड़ी है।
ताजमहल के शहर पर प्लास्टिक का ज़हर:
संगोष्ठी में अपने सारगर्भित उद्बोधन में, जाने-माने पर्यावरणविद डॉ. मुकुल पांड्या ने स्थिति की भयावहता को रेखांकित किया। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “ताजमहल के शहर आगरा की फिजा अब धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, प्लास्टिक के अदृश्य और घातक जहर से दम तोड़ रही है।” डॉ. पांड्या ने विशेष रूप से पॉलिथीन बैग, छोटी प्लास्टिक की बोतलें और 200 ग्राम से कम वजन के पाउच जैसे एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रकाश डाला, जिन्हें उन्होंने अब शहर के लिए एक ‘गंभीर और तत्काल संकट’ करार दिया। उन्होंने बताया कि ये प्लास्टिक उत्पाद हमारी नालियों को पूरी तरह से जाम कर रहे हैं, जीवनदायिनी यमुना नदी को निरंतर गंदा कर रहे हैं, और आगरा के ऐतिहासिक स्मारकों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों की शोभा को कुरूप कर रहे हैं। उनका सबसे बड़ा खतरा यह है कि एक बार इस्तेमाल होने के बाद ये प्लास्टिक उत्पाद सदियों तक पर्यावरण में पड़े रहते हैं – न केवल मानव स्वास्थ्य और वन्यजीवों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि आगरा की विश्व-प्रसिद्ध ऐतिहासिक विरासत और उसके गौरव को भी खतरे में डालते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक का अदृश्य खतरा और स्वास्थ्य पर प्रभाव:
गोष्ठी में वक्ताओं ने बताया कि इन एकल-उपयोग प्लास्टिक का इस्तेमाल शादियों, धार्मिक आयोजनों, पिकनिक और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बेलगाम और बेहिसाब तरीके से हो रहा है। ये प्लास्टिक उत्पाद धीरे-धीरे टूटकर अत्यंत सूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक कणों में बदल जाते हैं। ये माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी, पानी और अंततः हमारी भोजन श्रृंखला में अदृश्य रूप से समा जाते हैं, जिससे न केवल पौधों और जानवरों, बल्कि मनुष्यों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होते हैं। वैज्ञानिकों के शोध का हवाला देते हुए वक्ताओं ने चेतावनी दी कि ये माइक्रोप्लास्टिक श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं, पाचन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं, और कई गंभीर बीमारियों, जिनमें कैंसर और हार्मोनल असंतुलन शामिल हैं, का कारण भी बन सकते हैं।
शहर के बुनियादी ढांचे और पर्यावरण पर असर:
रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक बृज खंडेलवाल ने इस समस्या के शहरी और पर्यावरणीय परिणामों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, “एकल-उपयोग प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप, शहर के सीवर सिस्टम पूरी तरह से जाम हो रहे हैं, जिसके कारण थोड़ी सी बारिश में भी आगरा के निचले इलाके पानी में डूबने लगते हैं। इस समस्या से निपटने और जल निकासी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए नगर निगम को हर साल करोड़ों रुपये का भारी-भरकम खर्च उठाना पड़ता है, जो अंततः करदाताओं का पैसा है।” खंडेलवाल ने जोर देकर कहा कि यह समस्या अब केवल पर्यावरणीय नहीं रही, बल्कि यह आगरा के स्वास्थ्य, उसके नाजुक पर्यावरण और महत्वपूर्ण आधारभूत ढांचे को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। उन्होंने इस समस्या का समाधान स्पष्ट शब्दों में सामने रखा: “एकल-उपयोग प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक और उसका कड़ा अनुपालन ही एकमात्र रास्ता है।” उन्होंने सुझाव दिया कि केवल 2 लीटर या उससे बड़ी पानी की बोतलों की ही अनुमति दी जाए, जबकि सभी प्रकार की खरीदारी और अन्य उपयोगों के लिए कपड़े या कागज के थैलों का ही इस्तेमाल अनिवार्य किया जाए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने पर्यावरण-हितैषी बायोडिग्रेडेबल विकल्पों को बड़े पैमाने पर अपनाने पर भी जोर दिया।
कानून से बढ़कर जागरूकता की ज़रूरत:
वक्ताओं ने इस बात पर भी सहमति व्यक्त की कि कानून अकेले इस समस्या का समाधान नहीं कर सकता। इस अभियान की सफलता के लिए समाज के हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। दुकानदारों, आयोजकों (जो बड़े पैमाने पर प्लास्टिक का उपयोग करते हैं) और आम जनता को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी। इसके लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को प्लास्टिक के दुष्परिणामों को प्रभावी ढंग से समझाना होगा, और उन्हें पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित करना होगा।
यह केवल प्लास्टिक के खिलाफ एक साधारण लड़ाई नहीं है, बल्कि यह आगरा के भविष्य के लिए एक निर्णायक जंग है – एक ऐसा भविष्य जहाँ ताज की खूबसूरती प्लास्टिक के ढेर तले न दब जाए। इस विश्व पर्यावरण दिवस पर, संगोष्ठी में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों और पर्यावरण प्रेमियों ने मिलकर यह संकल्प लिया कि वे आगरा को प्लास्टिक मुक्त, स्वच्छ और हरा-भरा बनाने के लिए अथक प्रयास करेंगे – ताकि आने वाली पीढ़ियां एक स्वस्थ और बेहतर शहर में सांस ले सकें, और आगरा की ऐतिहासिक विरासत अक्षुण्ण बनी रहे।
इस महत्त्वपूर्ण गोष्ठी में डॉ. वेद प्रकाश त्रिपाठी, अंकुश दवे, पद्मिनी अय्यर, निधि पाठक, अंजू ददलानी, पंडित जुगल किशोर, अभिनव, गोस्वामी नंदन श्रोत्रिय, मुकेश चौधरी, रवि बंसल, डॉ. मनिंदर कौर, और के एन अग्निहोत्री सहित कई प्रमुख पर्यावरणविदों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया, जिन्होंने अपने विचारों से इस मुहिम को और मजबूती प्रदान की।