आगरा, उत्तर प्रदेश: शनिवार, 7 जून 2025, 4.21 AM।
भारतीय सेना की बौद्धिक शक्ति, सेना शिक्षा कोर (Army Educational Corps) ने अपनी गौरवशाली स्थापना के 105 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। इस महत्वपूर्ण अवसर पर आगरा के फतेहाबाद स्थित होटल निर्वाणा में एक भव्य और श्रद्धापूर्ण समारोह का आयोजन किया गया। कोर के पूर्व सैन्य अधिकारियों एवं जवानों ने बड़ी संख्या में एकत्र होकर अपनी संस्थान की ऐतिहासिक विरासत को स्मरण किया और भाईचारे तथा देशभक्ति का अद्भुत परिचय दिया। यह समारोह कोर के समृद्ध इतिहास और राष्ट्र निर्माण में उसके अमूल्य योगदान का साक्षी बना।
दीप प्रज्वलन से हुई समारोह की शुरुआत कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक तरीके से दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसे कैप्टन जसवंत सिंह और श्री सौरभ जैसवाल ने सम्पन्न किया। समारोह का संचालन बेहद सधे हुए अंदाज में कर्नल गजेन्द्र भदौरिया एवं हवलदार अरविंद चौहान ने किया, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम को एक प्रेरणादायक प्रवाह दिया। इस अवसर पर कोर का प्रतिष्ठित गीत – गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित “जहाँ निर्भय चित्त हो, मस्तिष्क ऊँचा, ज्ञान हो बाधा हीन…” – का सामूहिक गायन किया गया। इस गीत ने पूरे वातावरण को गहन राष्ट्रभक्ति और प्रेरणा से भर दिया, जिससे सभी पूर्व सैनिक और उपस्थित जन भावुक हो उठे।
पूर्व सैनिकों ने साझा किए सेवाकाल के संस्मरण समारोह का एक मार्मिक हिस्सा वह था, जब पूर्व सैनिकों ने अपने सेवाकाल के अनुभव और संस्मरण साझा किए। उन्होंने सेना में शिक्षा कोर की अतुलनीय भूमिका को स्मरण किया, जिसके अनुसार यह कोर न केवल सैन्य दक्षता में सहयोगी रही है, बल्कि सैनिकों के मानसिक, बौद्धिक और नैतिक विकास में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके अनुभवों ने बताया कि कैसे शिक्षा कोर ने सैनिकों को केवल युद्ध कौशल ही नहीं, बल्कि एक बेहतर नागरिक और अनुशासित व्यक्ति बनने में भी मदद की।

इस अवसर पर कई वरिष्ठ पूर्व सैनिकों की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिनमें कर्नल जी.एम. ख़ान, कर्नल अजय मिश्रा, कैप्टन टी.पी. मिश्रा, कैप्टन राजेश भदौरिया, सूबेदार मेजर आर.एस. शुक्ला, सूबेदार अशोक कुमार, और सूबेदार मेजर डी.के. सोलंकी प्रमुख थे। इनकी उपस्थिति ने समारोह में चार चाँद लगा दिए।
सेना शिक्षा कोर: बौद्धिक शक्ति की सैन्य शाखा कर्नल जी.एम. ख़ान ने सेना शिक्षा कोर के इतिहास और महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसकी स्थापना 1 जून 1921 को ब्रिटिश भारतीय सेना में सैनिकों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से की गई थी। समय के साथ, इस कोर ने अपनी भूमिका का विस्तार किया और केवल शिक्षा तक सीमित न रहकर मनोविज्ञान, भाषाई प्रशिक्षण, सैन्य इतिहास, रणनीति और नैतिक मूल्य संवर्धन जैसे क्षेत्रों में भी अभूतपूर्व योगदान दिया है।

यह कोर भारतीय सेना में एक ऐसी अद्वितीय शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है, जो सैनिकों को केवल हथियारों से लैस नहीं करती, बल्कि उन्हें विचारों से भी राष्ट्र की रक्षा करने के लिए तैयार करती है। सेना शिक्षा कोर मानसिक दृढ़ता, नेतृत्व और अनुशासन की नींव को सुदृढ़ कर एक ऐसे सैनिक का निर्माण करती है, जो शारीरिक और बौद्धिक, दोनों स्तरों पर राष्ट्र की सेवा के लिए सक्षम हो। इस 105वें स्थापना दिवस ने कोर की इस गौरवशाली यात्रा और उसके अविस्मरणीय योगदान को एक बार फिर रेखांकित किया।